कारण छे. रागना एक अंशनेय जे ज्ञान साथे भेळवे छे तेने ज्ञानना स्वरूपनी खबर
ज नथी, ज्ञान–आनंदमय स्वघरने भूलीने ते रागादि परघरमां भमी रह्यो छे,
स्वतत्त्वनी तेने खबर नथी; एवो अज्ञानी शुभरागनी गमे तेटली क्रियाओ करे तोपण
जराय धर्म तेने थतो नथी. तेने स्वभावनो विस्तार नथी, पण परभावनो ज पथारो छे.
छे. अशुद्धतानी हानी छे ने कर्मोनी निर्जरा छे.–आनुं नाम मोक्षमार्ग छे. शुद्धतानी ज्यां
वृद्धि नथी, अशुद्धतानी ज्यां हानी नथी ने कर्मोनी ज्यां निर्जरा नथी त्यां मोक्षमार्ग
केवो? ज्ञायकस्वभाव हुं छुं–एवुं निजस्वरूप जाण्या वगर शुद्धता थाय नहि, अशुद्धता
मटे नहीं ने कर्मो छूटे नहीं, एटले तेने मोक्षमार्ग होय नहि.
जीवनारो छे, टकनारो छे. तेना स्वभावनो अनुभव नीराकुळ आनंदमय छे, ने रागनो
अनुभव तो दुःखरूप आकुळतामय छे. –आवा भेदज्ञान वडे परभावोने छोडीने,
ज्ञानानंदमय निजभावने धर्मी जीव श्रद्धा–ज्ञानमां ल्ये छे ने तेने ज पोतापणे सदाय
अनुभवे छे. रखडता रामने आरामनुं स्थान तो आवो आत्मा छे, ए सिवाय बीजुं
कोई आरामनुं के सुखनुं स्थान नथी.
जीवनी निर्जरा बतावी. त्यां कोई अज्ञानी जीव रागमां रत होवा छतां, रागथी भिन्न
ज्ञाननो अनुभव न होवा छतां, एम माने के हुं पण सम्यग्द्रष्टि छुं ने मने पण बंधन
थतुं नथी, –तो ते जीव स्वच्छंदी छे, कदाच ते व्रत–तप वगेरे करतो होय तोपण
मिथ्यात्वने लीधे ते पापी ज छे; आत्मा अने अनात्मानी भिन्नतानुं तेने भान नथी,
ज्ञान अने रागनी भिन्नतानी तेने खबर नथी; व्रतादिना रागमां एकाकार वर्ततो थको
पोताने सम्यग्द्रष्टि माने छे. परंतु हजी मिथ्यात्वनुं पाप