कांई बंधन अटकी नहीं जाय, ज्यारे आत्मानो स्वभाव जाणीने अने रागादि
परभावोथी भेदज्ञान करीने, शुद्धज्ञानपणे परिणमशे त्यारे ज बंधन अटकशे. ने त्यारे
ज साची निर्जरा थशे. त्यांपण जेटलो राग छे तेने तो ते बंधनुं ज कारण समजे छे;
पण ज्ञानथी तेने भिन्न जाणे छे तेथी ते राग प्रत्ये तेने विरक्ति छे, अने ते वखतेय
तेने निर्जरा चालु ज छे. शुभराग छे ते पुण्य छे, पण तेनी साथे अज्ञानीने जे
मिथ्यात्व छे ते मोटुं पाप छे; अने ते राग वखते समकितीने रागथी पार चिदानंद
स्वभावना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वकनी जे निर्मळ परिणति वर्ते छे,–ते महान निर्जरानुं कारण
छे. अज्ञानीने शुद्धपरिणति तो छे नहि, रागथी जुदो आत्मा तेने श्रद्धा–ज्ञानमां के
अनुभवमां आव्यो नथी, रागमां ज ते वर्ते छे–तो तेने वैराग्य केवो? ने निर्जरा केवी?
पर जीवनी दयाना जराक शुभ परिणाम थाय त्यां अज्ञानी एम माने छे के आ
शरीरनी क्रिया मारी छे, –ते मिथ्यात्व; परजीवने में बचाव्यो एवी मान्यता ते
मिथ्यात्व; अने शुभराग थयो ते मारा ज्ञाननुं कार्य छे अथवा ते रागथी मने धर्म
थयो–एम माने छे ते पण मिथ्यात्व छे. आ रीते मिथ्यात्वनुं सेवन ते पाप छे.
शुभराग पोते मिथ्यात्व नथी पण ते वखते तेनाथी भिन्न ज्ञानस्वभावने भूलीने
अज्ञानीनी जे मिथ्या मान्यता छे ते मिथ्यात्व छे अने ते महापाप छे.
–पछी भले ते जीव व्यवहार व्रतसमिति पाळतो होय, तेथी कांई मिथ्यात्वनुं पाप मटी
न जाय. मिथ्यात्वनुं पाप तो त्यारे ज छूटे के ज्यारे परभावोथी अत्यंत भिन्न एवा
एक ज्ञायकभावपणे पोताने अनुभवे. आवो अनुभव करवो ते ज मोक्षमार्ग छे.
मोक्षमार्ग कहो के संवर–निर्जरा कहो, तेनी आ रीते छे.
हीनता छे, अज्ञान छे. जगतमां श्रैष्ठ होय तो भेदज्ञान अने शुद्धआत्मानो अनुभव
करवो ते ज छे; एनाथी ऊंचु बीजुं कांई नथी.
रागथी भिन्नतानुं भान कर्युं ते ज रागने टाळी शके. रागने पोताना स्वभावमां खतवे
ते तेने केम टाळी शके? धर्मीए रागथी भिन्नता जाणीने ज्ञानस्वभावना