Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
वीतरागी आनंदनो अनुभव कर्यो छे, एटले ते आनंद साथे सरखावतां शुभराग पण
तेने रोग जेवो लागे छे, ने शुद्धताना परिणमन वडे ते रागने ते मटाडवा मांगे छे.
अज्ञानीने तो रागथी भिन्नतानुं भान नथी, वीतरागी आनंदनी खबर नथी, तो ते
रागने कोनी साथे सरखावशे? ते तो अशुभ छोडीने शुभरागने सारो मानशे; पण
शुभरागमांय आनंद नथी, तेमां पण आकुळता छे–एनी तेने खबर नथी.
ज्ञानी पोताना ज्ञानानंदस्वभाव पासे समस्त रागने दुःखरूप जाणे छे, रागने
जे धर्म माने तेने तो मिथ्यात्वनुं महान पाप छे. मिथ्यात्वनुं पाप छूटया वगर
अव्रतादि पण छूटे नहि. अरे, पहेलां ज्ञानस्वरूप आत्मा केवो छे? एनी शांति केवी
छे? अने राग केवो छे? तेनी ओळखाण तो करो. तेनी साची ओळखाण थतां ज्ञान
अने रागनुं परिणमन जुदुं पडी जाय छे.
तारे राग मटाडवो होय तो पहेलां रागथी भिन्नता जाण; राग वगरनुं ज्ञाननुं
जीवन केवुं छे? तेने ओळख. राग साथे एकत्वबुद्धि रहे, तेनाथी लाभ माने, तेने कदी
राग छूटी शके नहीं. रागने छोडवानो उपाय एक ज छे के स्वभावसन्मुख थईने शुद्ध
ज्ञानरूपे परिणमवुं. कोई कहे के अशुभ ते तडको छे ने शुभ ते छायो छे, –तो कहे छे के
भाई, एम नथी; शुभ ते मंद तडको छे ने अशुभ ते तीव्र तडको छे,–बंनेमां तडको छे.
बंनेमां आकुळता छे, शांतिनी छांयडी तो राग वगरना ज्ञानमां छे,
शुद्धज्ञानपरिणमनमां ज साची शांति छे रागमां तो अशांति छे. शुद्धज्ञानमां ज साचो
छायो ने साचो विसामो छे. अरे, शुभरागनी आकुळतामां जे शांति माने, ते अंदरमां
ऊतरीने राग वगरनी शांतिने क््यांथी अनुभवशे? जेणे अंदरमां अतीन्द्रिय शांतिनो
अनुभव लीधो छे ते धर्मात्माने शुभरागनो एक विकल्प पण दुःखरूप भासे छे; ते
रागनो तेने प्रेम नथी.
सम्यग्द्रष्टि जीव गृहस्थ दशामां होय, व्रतादि न होय तोपण ते रागमां रत नथी,
राग प्रत्ये ते विरक्त छे; केमके तेने रागथी भिन्नता ने ज्ञानमां ज एकता वर्ते छे. अने
मिथ्याद्रष्टि जीव गृहस्थ हो के व्रत–महाव्रत पाळतो होय तोपण ते रागमां ज रत छे,
राग प्रत्ये तेने विरक्ति नथी, रागमां ज उपयोगनी एकता करतो थको ते बंधाय छे.
जुओ, ज्ञानी केम छूटे छे, ने अज्ञानी केम बंधाय छे तेनुं आ रहस्य छे.
अरे, चोरासीना अवतार तेमां जीवने क्यांय सुख नथी. धर्मी पुत्र–जेणे