संसारमां क््यांय मने चेन नथी; आ संसार कलेश अने दुःखथी भरेलो छे, तेनाथी हुं
हवे छूटवा मांगुं छुं ने आनंदथी भरेलो मारो आत्मा, तेने साधवा हुं वनमां जवा मांगुं
छुं; माटे हे माता! दीक्षा माटे मने रजा आपो. अमे आ संसारमां बीजी माता नहीं
करीए.–आ प्रमाणे वैराग्यवंत धर्मात्मा आत्माने साधवा चाली नीकळे छे. अंदर जेने
रागथी भिन्न आत्मानो अनुभव छे तेनी आ वात छे. अंदरमां मोक्षनो मार्ग जेणे
जोयो छे ते तेने साधे छे.
निश्चयतत्त्वनुं यथार्थ स्वरूप बतावीने शुभरागने पण ते छोडावे छे. अज्ञानी ते
शुभरागने मुक्तिनुं साधन माने छे एटले तेनाथी पार शुद्ध मोक्षमार्गने ते साधी शकतो
नथी. अथवा निश्चयना भान वगर शुभने छोडीने अशुभमां स्वछंदे वर्ते छे, तेने
अध्यात्म उपदेशनी समजण ज नथी. अहो, अध्यात्मउपदेश शुद्धआत्मानुं स्वरूप
बतावीने रागमां एकताबुद्धि सर्वथा छोडावे छे. अने रागमां ज्यां एकताबुद्धि छूटी त्यां
धर्मीनुं ज्ञान रागथी भिन्न परिणमवा लाग्युं, तेथी ते ज्ञान– परिणमनमां रागनो
अभाव ज छे, माटे ज्ञानीने राग नथी–एम समजवुं. धर्मीनी आवी ज्ञानदशा ते
निर्जरानुं कारण छे.
रजा मागे छे के हे माता! आत्माना परम आनंदने साधवा हुं हवे जाऊं छुं......हे
माता! सुखी थवा माटे हवे हुं जाऊं छुं.... मातानी आंखमांथी आंसुनी धारा वहे छे ने
पुत्रना रोमेरोमे वैराग्यनी छाया छवाई गई छे; ते कहे छे के अरे माता! जनेता तरीके
तुं मने सुखी करवा मांगे छे; तो हुं मारा सुखने साधवा जाउं छुं, तुं मारा सुखमां विघ्न
न करीश. बा! मारा आत्माना आनंदने साधवा हुं जाउं छुं, तेमां तुं दुःखी थईने मने
विघ्न न करीश.....हे जनेता! मने रजा आप. हुं आत्माना आनंदमां लीन थवा माटे
जाउं छुं.