Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : ३५ :
अमे जिनवरनां संतान
नवा सभ्योनां नाम
सभ्य नं. नाम गाम
२३८४ Aअनीलाबेन वी. जैन कलकत्ता
२३८४ B हरेशकुमार वी. जैन कलकत्ता
२३८४ C शोभनाबेन वी. जैन कलकत्ता
२३८ पदक्षाबेन एच. जैन सुरेन्द्रनगर
२३८६ कांतिलालभाई जी. जैन सुरेन्द्रनगर
२३८७ डी. के. जैन
छिन्दवाडा
२३८८ Aकीरण आर. जैन मुंबई
२३८८ B वर्षाबेन आर. जैन मुंबई
२३८८ C विजयकुमार आर. जैन मुंबई
२३८९ रंजनबाळा एच. जैन अमदावाद
२३९० सुधाबेन एस. जैन
वढवाण
२३९१ जगदीशचंद्र एम. जैन महुवा
२३९२ Aवसंतकुमार बाबुभाई जैन जांबुडी
२३९२ B सुरेखाबेन बी. जैन जांबुडी
२३९२ C दीपीकाबेन बी. जैन जाबुंडी
२३९३ महेन्द्रकुमार वाडीलाल जैन तलोद
२३९४ प्रकाशचंद्र
जवेरीलाल जैन दाहोद
२३९प Aभरतसिंह दाजीभाई जैन वढवाण
२३९५ B दोलतसिंह कनुभाई जैन वढवाण
२३९६ Aमुकेशभाई पुनमचंद जैन अमदावाद
२३९६ B नीलेषकुमार पुनमचंद जैन अमदावाद
२३९७ हेमन्तकुमार एच. जैन अमदावाद
२३९८ प्रफुल्लकुमार सी. जैन
अमदावाद
२३९९ Aराजेशकुमार कांतीलाल जैन लोणंद
२३९९ B रूपेशकुमार कांतीलाल जैन लोणंद
२४०० Aपारूलता बेन सवाईलाल जैन
२४०० B भारतीबाळा सवाईलाल जैन
२४०० C मयुरेषकुमार सवाईलाल जैन
२४०० Dजयबाळाबेन सवाईलाल जैन
२४०० E अजयकुमार सवाईलाल जैन
२४०१ Aप्रकाशकुमार शांतिलाल जैन कलकत्ता
२४०१ B संजीवकुमार शांतिलाल जैन कलकत्ता
२४०२ दिपावलीबेन प्रतापराय जैन कलकत्ता
२४०३ शैलेषकुमार नथुभाई जैन वीजापुर
बाळको पोतानी उर्मि व्यक्त करे छे–
• कलकत्ताथी भाईश्री शांतिलाल के
शाह गुरुदेवप्रत्ये भक्तिभावसहित लखे छे के
गुरुदेवना प्रतापे ज आत्मानी ओळखाण
करवानो अपूर्व अवसर मळ्‌यो छे. आत्मधर्ममां
गुरुदेवनी जीवनझरमर वांची, विचारी ने मनन
करी. बयानामां प्रभुनी मूर्ति समक्ष गुरुदेवे जे
उद्गारो कह्या ते अलौकिक छे. शेष जीवन
गुरुदेवनी छत्रछायामां वीते–एवी भावना छे.
गुरुदेवे खास समजाव्युं छे के आत्मानी
ओळखाण वगर तमाम क्रियाओ व्यर्थ ज छे.
• रखियालना केटलाय सभ्यो लखे छे
के–आत्मधर्म मळतां ज अमोने घणो आनंद
थाय छे. ज्यांंसुधी आत्मधर्मनो अंक नथी
मळतो त्यांसुधी बेचेनी थाय छे; एटले
आत्मधर्म मासिकना बदले जो पंदर दिवसे मळे
तो घणी मजा पडे. (भाईश्री, तमारी वात
तद्न साची छे. आ संबंधी हजारो
जिज्ञासुओना अभिप्राय साथे संपादक पण
सहमत छे.)
• जोरावरनगरथी कनकबाळा जैन
लखे छे–“खरेखर मानवजीवन दुर्लभ छे; तेमां