Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
पण धर्मनी आराधनावडे जीवनने
उज्वळ करी सार्थक करवुं ते
मानवजीवननी भव्यता छे. आवी प्रेरणा
आपतो सन्देश बालविभाग द्वारा प्राप्त
थयो तेने हुं वधावुं छुं.....ने ते पूर्ण
करवाना पुरुषार्थनी नेम राखुं छुं.
आत्मधर्म वांचता धार्मिक उत्साह प्राप्त
थाय छे; ने साधर्मीभाईओ प्रत्ये स्नेहनुं
सींचन थाय छे; गुरुदेव आपणने
अध्यात्मउपदेश आपीने धर्मनी
साधनानो अमीरस पीवडावे छे तेथी हुं
आपणने धन्य मानुं छुं. आपणो
धर्मध्वज सदा फरकतो रहे–ए ज भावना.
• आत्मधर्म वांचवुं अमने बहु
गमे छे. प्रश्नोथी विशेष आनंद आवे छे.
आत्मधर्म वांचीने अमने बहु जाणवानुंं
मळे छे ने दिनप्रतिदिन धर्मनो रस
वधतो जाय छे. आत्मधर्म ए मोक्षमां
जवानी सीडी छे.
(कोकिलाबेन तथा कल्पनाबेन: वढवाण)
• वढवाणथी रंजनबेन
वाडीलाल लखे छे के–आत्मधर्म आ
काळने विषे लायक जीवोने मधदरिये
दीवादांडी समान छे, तेमांय बाळकोने
प्रश्न–उत्तरमां खूब ज उल्लास जागे छे.
• ईन्दिोरथी मुकेश जैन लखे छे:
आजे जगतमां रोकेटनी वातो चाली रही
छे, परंतु गुरुदेव तो आपणने
मोक्षनगरीमां पहोंचवा माटेनुं रोकेट
बतावी रह्या छे. आत्मधर्ममां ए
रोकेटना समाचार (सम्यक्त्वनुं स्वरूप)
वांचीने मोक्षनी मुसाफरीनो उत्साह जागे छे.
• वढवाणना नानकडा सभ्य
भारतीबेन भांगीतूटी भाषामां प्रमोद
व्यक्त करतां लखे छे के हे गुरुदेव! अहो,
अमारा भाग्ये आप अमने मळ्‌या.
पंचमकाळे अमारा आत्माने आनंद आवे
एवो मार्ग बताडयो. तमे अमारा उपर
उपकार कर्यो, ने पापमांथी अमने मोक्षमां
जवा माटे रस्तो बताव्यो.
• कलकत्ताना सभ्य
ज्योत्स्नाबेन लखे छे–आत्मधर्म वांची
आनंद थाय छे. बीजा नंबरे पास थवा
छतां मारुं हृदय सोनगढ आववा झंखे छे,
केमके आ भणतर करतां अध्यात्म विद्या
ज साची छे. हुं नियमित समयसारनी बे
गाथा अने प्रश्नोत्तरमाळामांथी एक
प्रश्नोत्तर दररोज मोढे करती. मारा नाना
भाई–बहेन पण अभ्यासमां मारी साथे
भाग ले छे.
बेन, भारतभरमां तमारी जेम
नाना नानां बाळको घरेघरे धार्मिक
अभ्यास करता होय–एवा दिवसनी राह
जोईए छीए. अलबत्त, एनो एक अंश
शरू थई चूक््यो छे.
• अंक ३१० मां पूछेल प्रश्नोना
जवाब लखी मोकलनारा ४०० जेटला
जिज्ञासुओने ‘भगवान ऋषभदेव’
(बाळकोनुं आदिपुराण) पुस्तक भेट
मोकलवामां आव्युं छे.