जोईए.
• जीव पोते उपयोगस्वरूप छे–तेने ते जाणतो नथी.
• देहादि अजीव पोताथी जुदुं होवा छतां तेने पोतानुं माने छे.
• रागादि आस्रवो दुःखदायी होवा छतां तेने सुखरूप मानीने सेवे छे.
• पुण्य–पाप बंने बंधनरूप होवा छतां पुण्यबंधनने सारूं माने छे.
• संवरना कारणरूप जे ज्ञान–वैराग्य, ते तेने कष्टदायक लागे छे.
• ईच्छाना निरोधवडे निजशक्तिने प्रगट करवारूप निर्जराने ते जाणतो नथी.
• परम निराकुळ आनंदस्वरूप मोक्षदशाने ते ओळखतो नथी.
तत्त्वमां सूक्ष्म भूल रही जाय छे. अंतरमां पोताना शुद्ध स्वरूपनो अनुभव करे त्यारे ज
तत्त्वनी साची श्रद्धा ने साचुं ज्ञान होय छे; ने पछी ज चारित्र होय छे. तेना वडे मोक्ष
पमाय छे.
नथी, ईच्छा नथी, ईन्द्रियो वगर परिपूर्ण ज्ञान छे, ने पदार्थो वगर परिपूर्ण सुख छे.
ईन्द्रियो वगरनुं पूर्णज्ञान केवुं होय तेनी कल्पना पण अज्ञानीने नथी आवती, केमके ते
तो ईन्द्रियज्ञानने ज अनुभवनारो छे, तेथी मोक्षमां अतीन्द्रिय ज्ञाननुं जे अस्तित्व छे
ते तेने भासतुं नथी, एटले मोक्षमां तेने ज्ञाननो अभाव लागे छे! अहा, अतीन्द्रिय
ज्ञान ने अतीन्द्रिय सुखनुं कोई अपार महात्म्य छे, तेनुं स्वरूप ओळखे तो अतीन्द्रिय
ज्ञान ने आनंदनो अंश पोतामां पण प्रगटी जाय.