मग्न छे ते तो कांईक रागादिने साधन बनावीने तेनाथी मोक्ष साधवा मथे छे, पण
मोक्षना साचा उपायनी तेने खबर नथी.
तने तारो आत्मा देखाशे नहि, अनुभवाशे नहि. सीधो अभेद आत्मा ध्येयमां लेतां
सम्यग्दर्शनादि थाय छे. गुणभेदना विकल्प वडे आत्मा स्पर्शातो नथी– –अनुभवातो
नथी. लिंगथी एटले गुणभेदथी जेनुं ग्रहण थतुं नथी ते ‘अलिंग–ग्रहण’ छे.
गुणभेदमां मननी चंचळता छे, तेना वडे आत्मानो शांत अनुभव थतो नथी.
विकल्पनी आडशने वच्चेथी काढी नांखीने सीधा ज्ञान वडे अखंड आत्मा अनुभवाय
छे, एवो अनुभव ते ज साचो आनंद छे. (चर्चा)
एटले पर्यायना भेदने आत्मा स्पर्शतो नथी, तेना लक्षे आत्मा अनुभवातो नथी. सर्व
भेदने ओळंगीने अभेदपणे आत्मानो साचो अनुभव थाय छे.
पण धर्मीने ते निर्मळ पर्यायो तो छे. तेम आत्मामां ज्ञानादिगुणो छे तो खरा, पण
गुण–गुणीना विकल्प आत्माना स्वरूपमां नथी. ते विकल्पनो निषेध समजवो गुणनो
अभाव न समजवो. गुण–गुणीनी एकताद्रष्टिमां सम्यग्दर्शनादि थाय छे. (चर्चा)
नथी. गुणनो भेद पाडतां तो विकल्प थाय छे, तेनाथी आत्मा पकडातो नथी. वस्तु पोते
तो अनंत गुणस्वरूप छे. पण ‘आ वस्तु ने आ गुण’ एम भेदथी जोतां द्रष्टि त्रूटक
थई जाय छे, अखंड आत्मा ते द्रष्टिमां आवतो नथी, ने सम्यग्दर्शन थतुं नथी. भेदना
विकल्प वगरनी अभेद अनुभूतिमां आत्मा अनुभवाय छे.