Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
ईन्द्रियज्ञानवडे एनुं स्वरूप समजाय तेम नथी. जे एकला रागमां ने ईन्द्रियज्ञानमां ज
मग्न छे ते तो कांईक रागादिने साधन बनावीने तेनाथी मोक्ष साधवा मथे छे, पण
मोक्षना साचा उपायनी तेने खबर नथी.
आ प्रमाणे तत्त्वनी भूल ते मिथ्यात्व छे; ते मिथ्यात्व जीवने महान दुःख देनार
छे. माटे हे भाई! तत्त्वनुं साचुं स्वरूप जाणीने सम्यग्दर्शन वडे तेनो अभाव कर.
चैतन्यना चमकारा
• बीजानी सामे जोवानी तो वात दूर रहो, भगवान कहे छे के तारां आत्मामां
जोवा माटे पण जो ज्ञान ते आत्मा एवा गुण–गुणी भेदना विकल्पमां ऊभो रहीश तो
तने तारो आत्मा देखाशे नहि, अनुभवाशे नहि. सीधो अभेद आत्मा ध्येयमां लेतां
सम्यग्दर्शनादि थाय छे. गुणभेदना विकल्प वडे आत्मा स्पर्शातो नथी– –अनुभवातो
नथी. लिंगथी एटले गुणभेदथी जेनुं ग्रहण थतुं नथी ते ‘अलिंग–ग्रहण’ छे.
गुणभेदमां मननी चंचळता छे, तेना वडे आत्मानो शांत अनुभव थतो नथी.
विकल्पनी आडशने वच्चेथी काढी नांखीने सीधा ज्ञान वडे अखंड आत्मा अनुभवाय
छे, एवो अनुभव ते ज साचो आनंद छे. (चर्चा)
• ‘पर्याय नथी’ एटले के पर्यायनो भेद नथी. भेद पाडीने पर्यायने लक्षमां
लेतां विकल्प ऊठे छे, ने एटलुं ज द्रव्य माने तो साचुं द्रव्य प्रतीतमां आवतुं नथी.
एटले पर्यायना भेदने आत्मा स्पर्शतो नथी, तेना लक्षे आत्मा अनुभवातो नथी. सर्व
भेदने ओळंगीने अभेदपणे आत्मानो साचो अनुभव थाय छे.
• समयसारनी सातमी गाथामां कह्युं के ‘ज्ञानीने ज्ञान–दर्शन–चारित्र नथी;’ –
त्यां अभेदना अनुभवमां ते ज्ञान–दर्शन–चारित्रना भेद देखाता नथी, माटे एम कह्युं;
पण धर्मीने ते निर्मळ पर्यायो तो छे. तेम आत्मामां ज्ञानादिगुणो छे तो खरा, पण
गुण–गुणीना विकल्प आत्माना स्वरूपमां नथी. ते विकल्पनो निषेध समजवो गुणनो
अभाव न समजवो. गुण–गुणीनी एकताद्रष्टिमां सम्यग्दर्शनादि थाय छे. (चर्चा)
• आत्मा शुद्ध द्रव्य छे ते गुणविशेषथी आलिंगित नथी, गुणविशेषथी एटले
गुणभेदना विकल्पो वडे आत्मा अनुभवमां नथी आवतो, केमके गुण ने गुणी जुदा
नथी. गुणनो भेद पाडतां तो विकल्प थाय छे, तेनाथी आत्मा पकडातो नथी. वस्तु पोते
तो अनंत गुणस्वरूप छे. पण ‘आ वस्तु ने आ गुण’ एम भेदथी जोतां द्रष्टि त्रूटक
थई जाय छे, अखंड आत्मा ते द्रष्टिमां आवतो नथी, ने सम्यग्दर्शन थतुं नथी. भेदना
विकल्प वगरनी अभेद अनुभूतिमां आत्मा अनुभवाय छे.