स्वतत्त्वमां वसतां तने जडप्राण नहीं वळगे. अशरीरी आत्मामां लीन थतां
शरमजनक शरीरनुं धारण करवानुं छूटी जाय छे.
तेने जडप्राणो वळगता नथी, ते देहादिनी संतति छेदीने अशरीरी सिद्धपदने
पामे छे, ने चेतन प्राणथी सदाय जीवे छे. –आवुं जीवन ए ज आनंद छे.
पोते ज अशुद्धता वडे पोताना ज्ञान–आनंदमय जीवनने हणे छे, ने
भावमरणवडे दुःखी थाय छे. ज्ञान–दर्शन–सुख ने सत्ता ए जीवना खरा प्राण
छे, तेने जे नथी अनुभवतो ते जीव शरीरादि जड प्राणोने धारण करी करीने
संसारमां रखडे छे.
मोहने लीधे शरीर अने ईंद्रियो धारण करीने संसारमां रखडवुं पडे ते कलंक छे–
शरम छे. जीव ज्यांंसुधी चिदानंदस्वरूपने भूलीने शरीरादि बाह्य विषयोमां
ममत्वपणे वर्ते छे. त्यांसुधी ते पौद्गलिक प्राणने धारण करी करीने संसारमां
रखडे छे.
चिदानंदतत्त्वनो ज आश्रय करीने तेने ध्यावे, ने अत्यंत शुद्ध थईने पोताना
उपयोगस्वरूप आत्मामां एकमां ज लीन थईने रहे, त्यारे तेने अशुद्धतानो
अभाव थतां पौद्गलिक प्राणोनी संतति पण छेदाई जाय छे, जडकर्मो के जड
प्राणो तेने वळगतां नथी एटले तेने शरमजनक जन्मो टळी जाय छे; ने
आनंदमय सिद्धदशा प्रगटे छे.
सिद्धपद पामवा माटे, तुं देह अने ईन्द्रियोनुं ममत्व छोड, ने तेनाथी भिन्न
उपयोगस्वरूप आत्मा ज हुं छुं–एम जाणीने, तारा अतीन्द्रिय चैतन्यने एकने
ज ध्याव. सिद्धपदनो साक्षात् आनंद तने अनुभवाशे.