Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 44 of 48

background image
: ४२ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
हे मुमुक्षु! तुं तारा चैतन्यघरमां वस; चैतन्यप्राणथी जीवंत एवा तारा
स्वतत्त्वमां वसतां तने जडप्राण नहीं वळगे. अशरीरी आत्मामां लीन थतां
शरमजनक शरीरनुं धारण करवानुं छूटी जाय छे.
जे जीव शरीरमां एकत्वबुद्धि करीने परपरिणतिमां रहे छे तेने ज
शरीरादि जडप्राण वळगे छे, जे जीव भेदज्ञान करीने निजपरिणतिमां रहे छे
तेने जडप्राणो वळगता नथी, ते देहादिनी संतति छेदीने अशरीरी सिद्धपदने
पामे छे, ने चेतन प्राणथी सदाय जीवे छे. –आवुं जीवन ए ज आनंद छे.
(९७) जीव पोताना ज्ञान–आनंदरूप भावप्राणने बाधा कई रीते करे छे?
जीव मोहादिथी रंजित अशुद्ध परिणतिवडे पोताना भावप्राणने बाधा करे छे,
पोते ज अशुद्धता वडे पोताना ज्ञान–आनंदमय जीवनने हणे छे, ने
भावमरणवडे दुःखी थाय छे. ज्ञान–दर्शन–सुख ने सत्ता ए जीवना खरा प्राण
छे, तेने जे नथी अनुभवतो ते जीव शरीरादि जड प्राणोने धारण करी करीने
संसारमां रखडे छे.
(९८) आत्माने शरीर धारण करवुं पडे ते केवुं छे?
ते शरमजनक छे; अरे, आ अशरीरी अतीन्द्रिय चैतन्यप्राणवाळा आत्माने
मोहने लीधे शरीर अने ईंद्रियो धारण करीने संसारमां रखडवुं पडे ते कलंक छे–
शरम छे. जीव ज्यांंसुधी चिदानंदस्वरूपने भूलीने शरीरादि बाह्य विषयोमां
ममत्वपणे वर्ते छे. त्यांसुधी ते पौद्गलिक प्राणने धारण करी करीने संसारमां
रखडे छे.
(९९) ते शरमजनक जन्मो केम टळे?
जीव ज्यारे परद्रव्योनुं ममत्व अने आश्रय छोडीने, परथी भिन्न पोताना
चिदानंदतत्त्वनो ज आश्रय करीने तेने ध्यावे, ने अत्यंत शुद्ध थईने पोताना
उपयोगस्वरूप आत्मामां एकमां ज लीन थईने रहे, त्यारे तेने अशुद्धतानो
अभाव थतां पौद्गलिक प्राणोनी संतति पण छेदाई जाय छे, जडकर्मो के जड
प्राणो तेने वळगतां नथी एटले तेने शरमजनक जन्मो टळी जाय छे; ने
आनंदमय सिद्धदशा प्रगटे छे.
(१००) हे भाई! तारे तारा अतीन्द्रिय ज्ञानानंदमय जीवनने प्राप्त करवुं छे ने?
–हा; तो एवा अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदमय जीवनने प्राप्त करवा, एटले के
सिद्धपद पामवा माटे, तुं देह अने ईन्द्रियोनुं ममत्व छोड, ने तेनाथी भिन्न
उपयोगस्वरूप आत्मा ज हुं छुं–एम जाणीने, तारा अतीन्द्रिय चैतन्यने एकने
ज ध्याव. सिद्धपदनो साक्षात् आनंद तने अनुभवाशे.