Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 45 of 48

background image
: आसो : २४९प आत्मधर्म : ४३ :
आनंदनी प्राप्ति अने सात तत्त्वनी ओळखाण
आत्माने आनंद जोईए छे ने? तो ते आनंद क््यांय बहारमां नथी,
आत्मामां ज आनंद छे. माटे ज्ञानी कहे छे के ‘जीव! तुं आत्मामां गमाड......तुं
आत्मामां सदा प्रीतिवंत था.’ आत्माना ज्ञान वगरनुं बधुं दुःखदायक ज छे.
सात तत्त्वोनी बराबर ओळखाण करतां तेमां आत्मानी ओळखाण आवी जाय
छे. ते आ प्रमाणे–
(१) जीव सदा उपयोगलक्षणरूप छे– ‘जीवो उवओगलक्खणो णिच्चं” ते शरीरादि
अजीवथी जुदुं तत्त्व छे.
(२) पुद्गल वगेरे अजीव तत्त्वो छे, तेमनामां ज्ञान नथी. आ जीव अने अजीव
बंनेना काम जुदां, पोतपोतामां छे.
(३) मिथ्यात्वादि भावो छे ते आस्रव छे; पुण्य–पाप बंने पण आस्रवमां समाय छे. ते
आस्रवभावो जीवने दुःखदायक छे.
(४) सम्यग्दर्शनादि वीतरागभाववडे कर्मनो संवर थाय छे. ते सम्यग्दर्शनादि भावो
जीवने सुखरूप छे, मोक्षनां कारण छे.
(प) मिथ्यात्वादि भावो ते बंधनां कारण छे; शुभराग ते पण बंधनुं कारण छे, ते
मोक्षनुं कारण नथी.
(६) सम्यग्दर्शनपूर्वकनी शुद्धताथी कर्मोनी निर्जरा थाय छे.
(७) आत्मानी पूर्ण शुद्धता थतां आकुळतानो सर्वथा अभाव थवो ने कर्मोथी आत्मानुं
छूटी जवुं ते मोक्षतत्त्व छे. ते पूर्ण सुखरूप छे.
आ प्रमाणे सात तत्त्वोने ओळखीने तेमांथी सम्यग्दर्शनादि सुखनां
कारणोने ग्रहण करवां ने दुःखना कारणरूप मिथ्यात्वादिने छोडवां. आ आनंदनी
प्राप्तिनो उपाय छे.
पंच परमेष्ठिीने नमस्कार करवाथी विघ्ननो नाश कई रीते थाय
छे? तेनो उत्तम एम जाणवो के–पोताना हृदयमां पंच परमेष्ठीना
स्वरूपनो साक्षात्कार करीने जे भावनमस्कार करे छे तेने
शुद्धभावना प्रभावथी विघ्नना कारणरूप अंतराय कर्मनो नाश
थई जाय छे.
–भगवती आराधना २