: ४४ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
२६ मुं वर्ष पुरुं थाय छे –
वीसमी शताब्दिनुं एक वर्ष, अने आ एकवीसमी शताब्दिना पचीस वर्ष, एम
‘आत्मधर्म’ ना छव्वीस वर्ष आ अंकनी साथे पूरा थाय छे, अने आगामी अंके २७ मां
वर्षमां प्रवेश थशे.
गुजराती अने हिंदी मळीने पांच हजार जेटली ग्राहक संख्या अने पचीस हजार
जेटली वाचक संख्या धरावतुं ‘आत्मधर्म’ पू. गुरुदेवद्वारा वीतरागी जिनमार्गनो
सन्देश लईने आवतुं होवाथी सर्वे जिज्ञासुओने खूब वहालुं छे. मोटा विद्वानोनी जेम
नाना बाळको पण ते उमंगथी वांचे छे. जेवी उच्च कक्षानो गुरुदेवनो उपदेश छे तेवी ज
उच्च कक्षानो वाचकवर्ग छे–ए आत्मधर्मनुं गौरव छे.
पू. श्री कहानगुरुदेवनी मंगल आशीष झीलीने, तेमनी मंगल छायामां चालतुं
आ ‘आत्मधर्म’ चार मुख्य उदे्श धरावे छे: सौथी पहेलुं आत्मार्थीतानुं पोषण (२)
देव–गुरु–धर्मनी सेवा (३) साधर्मीओमां वात्सल्यनो विस्तार अने (४) बाळकोमां
धार्मिक संस्कारनुं सींचन.–आपणा ए चारेय उदे्श संतोषपूर्वक पार पडी रह्या छे. आम
छतां हजी घणा घणा प्रकारे आत्मधर्मना विकास माटे अवकाश छे; अने ते माटे सर्वे
साधर्मीबन्धुओनो सहकार तथा सूचनाओ अमे सहर्ष स्वीकारीए छीए.
चालु वर्षमां केटलीक विविधताओ माटे प्रयास करेल छे, अने आवता वर्षमां
पण विविधता माटे प्रयत्न करीशुं. कारणवशात् आ वर्षमां बाळको माटेनुं साहित्य
ओछुं अपायुं छे, –छेल्ला बार अंकमां बालविभागमां मात्र २० पानां ज आपी शकाया
हता, आवता वर्षे ते तरफ विशेष ध्यान आपीशुं–ने बाळकोने आनंद करावशुं.
अंतमां एटलुं कहीशुं के आत्मधर्म आपणुं सौनुं छे; सौना सहकारथी तेनो
जेटलो वधु विकास थाय तेटली सौनी शोभा छे. एटले सर्वे अध्यात्मप्रेमी
जिज्ञासुओना प्रेमभर्या सहकारनी आशा राखीए छीए; अने अत्यार सुधी सहकार
आपनारा सौनो आभार मानीए छीए.
ब्र–हरिलाल जैन