Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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एकवार नदीकिनारे एक
ज्ञानीधर्मात्मा बेठा हता; तेमनी पासे एक
बाळक बेठो हतो अने वातचीत करतो हतो.
• एवामां त्यांथी कोई एक जीव
पसार थयो....बाळके धर्मात्माने पूछयुं: आ
कोण छे? धर्मात्माए कह्युं: ई बांधे छे झाझुं
पण छोडे छे थोडुं’ बाळक विचारमां पडी
गयो के ई कोण?
• त्यां तो बीजो एक जीव आवीने
धर्मात्मानी साथे ज बेठो.......बाळके पूछयुं:
आ कोण? त्यारे धर्मात्माए कह्यु: ई “छोडे
छे झाझुं पण बांध छे थोडुं”
• हजी तो बाळक विचार करे छे के
ई कोण? –त्यां तो आकाशमां उपर एक जीवने पसार थतां देखीने तेना आर्श्चयनो
पार न रह्यो.....तरत ज तेणे पूछयुं: ‘आ वळी कोण? धर्मात्माए ते जीव प्रत्ये हाथ
जोडीने कह्युं: छोडे छे बधुंय पण बांधता नथी जराय’ बाळकने थयुं के विचार करीने
हमणां ज एने ओळखी काढुं.
• त्यां तो एक चोथो जीव ते बाळकना लक्षमां आव्यो, अने तरत धर्मात्माने
पूछयुं के ई कोण? –धर्मात्माए आंख मींचीने कह्युं: ई तो “बांधताय नथी ने
छोडताय नथी.” बाळक विचारमां पडी गयो के ई कोण?
• हजी पण ए बाळक विचारमां ज छे.....ने ए चारे जीवोने ओळखवा
महेनत करी रह्यो छे......तमे एने मदद करशो?
• चार जीवोने ओळखी काढो •
(१) बांधे छे झाझुं पण छोडे छे थोडुं:
(२) छोडे छे झाझुं पण बांधे छे थोडुं:
(३) छोडे छे बधुंय पण बांधता नथी जराय:
(४) बांधताय नथी ने छोडताय नथी: