Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : : कारतक : २४९६
शुभरागनी क्रियामां
ज्ञाननो प्रकाश नथी
(समयसार गाथा २०प)
मोक्षार्थी जीवोए ज्ञाननुं ज सेवन करवुं, तेमां परम सुख छे.
रागना सेवन वडे कदी मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.
जेओ शुभरागना क्रियाकांडने मोक्षनुं कारण मानी रह्या छे ने रागथी भिन्न
ज्ञाननुं सेवन करता नथी ते जीवो मोक्षथी विमुख छे, तेओ व्यवहार व्रत–तपना रागथी
गमे तेटलो कलेश उठावे तोपण ज्ञानना सेवन वगर कोई पण रीते मोक्षने पामी शकता
नथी; केमके मोक्ष तो शुद्ध ज्ञानमय पद छे, अने ते तो ज्ञान वडे ज स्वसंवेदनमां आवे
छे. ज्ञान गुण विना तेनी प्राप्ति थई शकती नथी.
‘ज्ञानगुण’ एटले के, ज्ञानस्वभावनी अनुभवदशारूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र ते ‘ज्ञानगुण’ छे, तेमां रागना क्रियाकांडनो अभाव छे. ज्ञान–अनुभवनी क्रिया
ते मोक्षनुं कारण छे पण रागनी क्रिया ते मोक्षनुं कारण नथी.–आवा ज्ञानस्वरूप
निजपदने ओळखीने हे जीवो! ज्ञान वडे तेनुं सेवन करो.
जगतना घणा जीवो तो अज्ञानी होवाथी पोताना ज्ञानमय निजपदने
ओळखता नथी, ने अज्ञानमय एवा रागादि भावोने ज मोक्षनुं कारण समजीने सेवी
रह्या छे. तेओ तो राग वगरना ज्ञानपदने अनुभवता नथी तेथी मोक्षने पामता नथी.
पण जे जीव मोक्षार्थी होय ते पोताना ज्ञानस्वभावने ओळखीने तेनुं ज आलंबन करो;
तेना अनुभवथी जरूर मोक्ष पमाय छे.
शुभराग वडे ज्ञाननो अनुभव थाय? कदी न थाय, केम के राग तो ज्ञानथी
विरुद्ध भाव छे. रागनी क्रियामांथी ज्ञान प्रगट करवा ईच्छे छे ते जीवोने ज्ञानपदनी
खबर नथी, तेओ तो रागमां ने पुण्यमां ज संतुष्ठ छे, तेमां ज लीन छे. हे मुमुक्षु!
मोक्षने माटे तुं आ ज्ञाननो अनुभव करीने तेमां ज तृप्त था, ज्ञानमां ज संतुष्ठ था ने
ज्ञानमां ज लीन था.–एम करवाथी साक्षात् उत्तम सुख तने अनुभवाशे.