Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९६ : ११ :
रागमां ज्ञाननो प्रकाश नथी,–गमे ते जातनो राग हो, पूजनादिनो हो,
पंचमहाव्रतनो हो के गुण–गुणी भेदनो हो, कोई पण रागमां ज्ञाननुं प्रकाशवुं नथी, ने
ज्ञानमां रागनी उत्पत्ति नथी.–आम भिन्नपणुं जाणीने ज्ञानमात्र आत्मानो अनुभव
करवो ते ज परम सुख छे, ते ज मोक्षनो उपाय छे.
साचो आत्मा एटले के परमार्थ आत्मा तो ज्ञानमय छे; ज्ञानमय कहेतां सुख–
श्रद्धा वगेरे अनंत गुणना रसथी एकरूप छे; पण ते रागरूप नथी. साचा आत्माना
अनुभवमां ज्ञान प्रकाशे छे, पण तेमां रागनो अनुभव नथी. माटे हे जीव! आवा
आत्मानो अनुभव करवा तुं रागनी प्रीति छोड ने ज्ञानस्वभावनी ज प्रीति कर.–
‘आमां सदा प्रीतिवंत बन.’ ज्ञानपणे जे अनुभवमां आवे छे एटलो ज सत्य आत्मा
छे. ज्ञानना अनुभवमां रागनो प्रवेश नथी माटे राग ते खरेखर आत्मा नथी, एटले के
ते साचो आत्मा नथी, तेथी तेने ‘अनात्मा’ कह्यो छे.–तो ते अनात्मा वडे आत्मानी
प्राप्ति केम थाय? शुभरागथी ज्ञाननो अनुभव थशे एम जे माने छे ते अनात्माने ज
आत्मा माने छे; ते जीवो ज्ञानशून्य छे; रागमां ज लीन ते जीवो कर्मथी कदी छूटता
नथी, आ ज्ञानस्वरूप निजपद छे ते कर्मथी एटले के रागना क्रियाकांडथी कदी प्राप्त थतुं
नथी, ए तो रागथी पार सहज ज्ञानकळावडे ज अनुभवमां आवे छे. माटे मोक्षार्थी
जीवो सतत निजज्ञाननी कळाना उद्यमथी आ ज्ञानस्वभावना अनुभवनो अभ्यास
करो. वारंवार ज्ञाननो ज अभ्यास करो. सर्व रागथी जुदो–जुदो ने जुदो, एम अत्यंत
भेदज्ञान करो, ने सदाय ज्ञानमय स्वभावथी पूरो–पूरो ने पूरो, एम ज्ञानमां तन्मय
थईने तेनो अनुभव करो.
हे मोक्षार्थी जीवो! तमे ज्ञाननो ज अनुभव करो; ज्ञानना अनुभवमां ज परम
सुख छे,–एम आचार्यदेव २०६ मी गाथामां कहे छे–
आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
(विशेष माटे जुओ पानुं–२१)