Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : : कारतक : २४९६
* आत्मामां स्वाद होय
हा, आनंदरसनो अतीन्द्रिय स्वाद आत्मामां ज छे, बीजे क््यांय नथी. आत्मामां
जडनो खाटो–मीठो स्वाद न होय; तेमज हर्ष–शोकना वेदनरूप जे दुःखनो स्वाद छे ते
पण आत्माना ज्ञानस्वभावमां नथी, ज्ञानस्वभावमांथी तो अत्यंत मधुर स्वसंवेदनरूप
वीतरागी आनंदनो स्वाद आवे छे. चैतन्यरसनो ए स्वाद सिद्धभगवान जेवो छे;
अंतरना अनुभव वडे जीव ज्यारे पोताना आत्मानो आवो स्वाद चाखे त्यारे ज ते
धर्मी छे, ने ए आनंदरसनो महान स्वाद लेतो–लेतो ते सिद्धपदने साधे छे.
* चिदानंद वस्तु *
भूलमा भूलमा भूलमा रे
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा!
परने पोतानी मान मा रे
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा!
तारामां शांत था...धर्मात्मा जीव था!
स्वरूप–बहार तुं भममा रे.....
तारी चिदानन्द वस्तुने भूलमा...भूलमा...
सम्यग्द्रष्टि था...भ्रम मटाडी,
आनंद स्वरूपे तुं लीन था रे...
तारी चिदानंद वस्तुने भूलमा...भूलमा...
आनंदनो दरियो ज्ञानस्वरूपी
ऊछळे एमां तुं मग्न था रे...
तारी चिदानंद वस्तुने भूलमा...भूलमा..
आवी गयो छे अवसर रूडो
शांतस्वरूपे तुं स्थिर था रे...
तारी चिदानंद वस्तुने भूलमा...भूलमा...
(समयसार प्रवचनो पृ. १७प उपरथी)