: कारतक : २४९६ : १९ :
चैतन्यमय जीवनुं रागथी अत्यंत जुदापणुं
आवुं तत्त्व तीर्थंकरना श्रीमुखथी आव्युं...संतोए झील्युं...ने शास्त्रोमां गूंथ्युं
(१६ बोलद्वारा रजु थती १६ आनी वात)
(१) शुद्धज्ञानमय जीव छे; अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंद ते जीवनां परिणाम छे.
(२) कर्म के शुभराग, ते जीवनां परिणामने जाणतां नथी, तेमज पोते पोताने पण
जाणतां नथी, केमके तेमनामां चेतनपणुं नथी.
(३) अचेतन एवा रागादि परिणामो, ते जीवना निर्मळ ज्ञानपरिणामने उपजावी
शकता नथी.
(४) ज्ञानस्वरूप आत्मा ज पोताना ज्ञानपरिणामरूपे ऊपजे छे, राग तेने उपजावतो
नथी, एटले रागना आश्रये तेनी उत्पत्ति नथी.
(प) तेमज, ज्ञानपरिणामरूपे ऊपजतो ते आत्मा, पोतामांथी रागादिने उपजावतो
नथी, रागपणे पोते ऊपजतो नथी.
(६) जेम माटीनुं अने कुंभारनुं परिणमन जुदुं छे. तेम रागादिनुं अने ज्ञाननुं
परिणमन जुदुं छे. माटीने पोताना परिणामरूप घडा साथे एकता छे तेम
आत्माने पोताना ज्ञानपरिणाम साथे एकता छे.
(७) ज्ञानीनो आत्मा ज्ञानपरिणाम साथे ज तन्मय थईने परिणमे छे, बीजा कोई
परभावमां तेनां परिणाम थतां नथी. आवा ज्ञानपरिणाम वडे ज्ञानी ओळखाय छे.
(८) चेतननां परिणाम रागने स्पर्शता नथी, ते रागथी जुदा रहे छे ने
चैतन्यस्वभावने स्पर्शे छे, चैतन्यस्वभाव साथे तेनी एकता छे.
(९) परभावोथी भिन्नता, ने निजस्वभाव साथे एकता, एवी दशारूपे धर्मी जीव
परिणमे छे; अने ते ज आत्मानुं खरूं स्वरूप छे.
(१०) तीर्थंकरना श्रीमुखथी जे तत्त्व आव्युं ते झीलीने संतोए अनुभव्युं ने शास्त्रमां
गूंथ्युं. तेमां कहेलो शुद्धआत्मा ज्ञानपरिणामवाळो ज छे. आवा आत्माने
अनुभवमां लेवो ते धर्म छे, ते भगवाननो मार्ग छे.
(११) जेम जड द्रव्य वडे चेतननी उत्पत्ति थती नथी, तेम राग वडे ज्ञाननी उत्पत्ति
थती नथी, केमके बंने भिन्न छे.