Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २० : : कारतक : २४९६
(१२) जो शुभराग वडे ज्ञाननी के मोक्षमार्गनी उत्पत्ति थाय, तो राग अने ज्ञान
एक थई जाय.–अने एम थाय तो, आत्मा ज्ञानमय न रहेतां आत्मा
रागमय थई जाय.–तो पछी रागथी जुदो आत्मा अनुभवी ज न शकाय!
एटले वीतरागी मोक्षमार्गनो ज अभाव थई जाय.–पण एवुं वस्तुस्वरूप
नथी. रागथी जुदो ज्ञानमय आत्मा अनुभवाय छे; रागवडे ज्ञाननी उत्पत्ति
कदी थती नथी.
(१३) सम्यग्दर्शन पर्याय थाय तेमां शरूमां, वचमां के अंतमां क््यांय राग छे?
–तो कहे छे के ना; तेमां क््यांय राग नथी; सम्यग्दर्शनमां सर्वत्र ज्ञानमय
शुद्धआत्मा ज छे; आत्मा ज ते पर्यायमां प्रसर्यो छे, तेमां राग नथी प्रसर्यो.
रागथी तो ते सम्यग्दर्शनादि परिणामो अत्यंत जुदा ज छे.
(१४) सम्यग्दर्शनादि परिणाम, अने राग,–ए बंनेनो एक काळ होय तेथी शुं? तेथी
कांई तेओ एकबीजाने करतां नथी. सम्यग्दर्शन रागने उपजावतुं नथी ने
रागवडे सम्यग्दर्शन ऊपजतुं नथी. धर्मीने ते राग रागपणे ऊपजतो देखाय छे,
पण कांई ज्ञानपणे ते देखातो नथी. माटे धर्मी ते रागने करतो नथी, ते तो
ज्ञानपणे ऊपजतो थको ज्ञानने ज करे छे.
(१प) भेदज्ञानना एक ज घा वडे राग अने ज्ञानना बे कटका थई जाय छे.
प्रज्ञाछीणीना घा वडे ज्ञान अने बंधभाव सर्वथा जुदा पडी जाय छे. भेदज्ञान
रागने अने चेतनने सर्वथा जुदा जाणे छे, तेमनामां जराय एकता देखतुं नथी.
ए रीते भिन्न जाणीने अंतरमां ज्ञानस्वरूपपणे ज ते पोताने अनुभवे छे.–
आवा अनुभव वडे बंधन छेदाय छे ने मुक्ति थाय छे.
(१६) परद्रव्य तरफ झुकता जे रागादि परिणामो, तेना वडे जीवना सम्यग्दर्शनादि
भावो कराता नथी; आत्माना ज्ञानस्वभाव वडे ज ते भावो कराय छे. एटले के
ते सम्यग्दर्शनादिने राग साथे जराय एकता नथी पण भिन्नता छे;
ज्ञानस्वभाव साथे ज तेने एकता छे. आम निजस्वभाव साथे एकताने
अनुभवतो जीव ज्ञानी छे.
आ सोळ बोल वडे भेदज्ञान करीने, ज्ञान अने रागनुं सर्वथा जुदापणुं
अनुभवतां सोळआनी एवुं सिद्धपद प्रगटे छे.
(समयसार गाथा ७प थी ७९ ना प्रवचनमांथी)