: कारतक : २४९६ : २१ :
ज्ञानीना आत्म–अनुभवनो महिमा
–अने–
एवा आत्मअनुभवनी प्रेरणा
(आसो वद चोथनुं प्रवचन: समयसार गाथा २०६)
सुखी थवा माटे, आचार्यदेव
कहे छे के हे जीव! जेटलो ज्ञाननो
अनुभव छे तेटलो ज साचो आत्मा
छे एम जाणीने तुं आत्मानी प्रीति
कर....आत्माना अनुभवमां ज
संतुष्ठ था; तेमां ज तृप्त था....एटले
के तुं आत्मामां ज गमाड.–एम
करवाथी तारा अंतरमां परमसुखनो
तने अनुभव थशे.
पहेलां तो ज्ञाननी कळा वडे एवुं भेदज्ञान करो के जे ज्ञान छे ते आत्मा
छे, ने राग ते आत्मा नथी. परद्रव्य तरफनी वृत्ति अशुभ हो के शुभ–ते आत्मा
नथी, स्वपणे अनुभवातुं ज्ञान ते आत्मा छे. आवा ज्ञानना स्वसंवेदननी कळा
ते मोक्षनी कळा छे. आत्माना अनुभवनी आ कळा ते ज साची कळा छे, तेनो
वारंवार अभ्यास करवा जेवुं छे. दुःखथी छूटवुं होय ने सुखी थवुं होय तो
परभावोथी भिन्न आत्माने जाणीने तेनो ज अभ्यास करवा जेवो छे. ते
अभ्यास कई रीते करवो ते वात आ २०६ मी गाथामां आचार्यदेव समजावे छे–