Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : : कारतक : २४९६
आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
तारी चीज तो ज्ञानस्वरूप आत्मा छे; शरीरादि कांई तारी चीज नथी; रागादि
आकुळताजनक क्षणिक भावो ते पण कांई जीवपणे अनुभवाता नथी, तेओ पण
खरेखर जीव नथी. तो साचो जीव केवो छे? के जेटलुं सत्य आ अनुभवमां आवतुं ज्ञान
छे एटलो ज सत्य आत्मा छे. माटे हे भव्य! तुं आवा आत्मामां ज रति कर, तेनो ज
प्रेम कर, तेनी प्रीति कर. ‘जेटलुं ज्ञान तेटलो साचो आत्मा’ एम कहीने बीजा बधा
परभावो काढी नांख्या.
जेम साकर केटली?–के जेटलुं गळपण छे तेटली; कचरो के मेल ते साकर नथी;
तेम आत्मा केटलो? के जेटलुं ज्ञान छे तेटलो साचो आत्मा छे; जडनो संयोग के रागादि
मेल ते आत्मा नथी. ‘आ ज्ञानमय वस्तु ज हुं छुं’ एम नक्की करीने तेमां प्रेम कर.
संयोगने अने पुण्य–पापना भावोने पोतानां मानीने तेनो अनादिथी प्रेम करी करीने
दुःखी थयो, पण ते तारां न हतां. तेने जुदा जाणीने तेनो प्रेम छोड; ने आत्माने
ज्ञानमय जाणीने तेनो प्रेम कर, तो तने उत्तम सुख थशे. परद्रव्यनो प्रेम ते दुर्गति छे–
संसार छे; स्वद्रव्यनो प्रेम ते सुगति छे, सुगति एटले मोक्ष.–ते परना आश्रये न थाय;
मोक्ष तो ज्ञानमय स्वद्रव्यना ज आश्रये थाय छे.
ज्ञान ने आत्मा, एटले गुण ने गुणी, ते एक चीज छे, तेटलो ज साचो आत्मा
छे. रागने आत्मा ते एक चीज नथी. रागमां तन्मयता वडे आत्मा अनुभवातो नथी,
ज्ञानमां तन्मयता वडे आत्मा अनुभवाय छे. रागनी प्रीति करीश तो आत्मानी प्रीति
नहीं रहे. रागने साधन बनावीने तेनाथी आत्मानुं कल्याण माने तो ते जीवने रागनो
प्रेम छे, तेने चैतन्यस्वरूप आत्मानो प्रेम नथी. अरे, हजी तो बहारना भपकामां
आत्मा अर्पाई जाय ते अंदरमां चैतन्यस्वरूपनो प्रेम क््यारे करे? घणा जीवोने तो
चैतन्यस्वरूप आत्मानी वात सांभळवानीये फूरसद नथी, संसारना तीव्र प्रेममां डुबेला
छे. एवा जीवो तो महा दुःखी छे.