छे. अरे, रागनो प्रेम ते तो कुशील छे, शुभरागनो–पुण्यनो प्रेम ते पण कुशील छे, ते
पण संसारमां रखडावनार छे, भले स्वर्गनो भव करावे परंतु ते पण संसार छे, तेमां
जराय कल्याण नथी. पाप अने पुण्यथी पार एवो जे सहज ज्ञानस्वभाव, ते स्वभाव
जेने गमे ते रागनो प्रेम न करे; ज्ञाननो ज प्रेम करीने तेनो अनुभव करतां अपूर्व
आनंदनो अनुभव थाय छे,–के जे आनंदनी पोताने तत्क्षण खबर पडे छे.
कलेशथी छूटवुं होय, ने मोक्षनुं अविनाशी कल्याण जोईतुं होय तेणे पोताना ज्ञानस्वरूप
आत्माने ज कल्याणरूप जाणीने तेमां संतुष्ठ थवुं. रागमां कदी संतोष थाय तेवुं नथी,
तेमां तो विषयोनी ईच्छा ने आकुळता ज छे; राग पोते ज आकुळता छे तो तेमां
संतोष केवो? ज्ञान छे ते निराकुळ छे, माटे तेना अनुभवथी ज संतोष पाम. आ
भगवान आत्मानो प्रेम करीने तेमां संतोष पाम. ज्यां अनंत सुखस्वभावथी भरेलो
पोतानो आत्मा जोयो त्यां धर्मीने परम संतोष छे; हवे बीजा कोई परभावनी
अभिलाषा रहेती नथी. अचिंत्य शक्तिथी भरेलो आत्मा, तेना अनुभवमां सर्व
प्रयोजननी सिद्धि छे, पछी बीजाने ज्ञानी केम ईच्छे? मारुं सुख, मारो आनंद, मारुं
कल्याण, मारुं ज्ञान–बधुं मारामां परिपूर्ण छे, एम ज्यां आत्माने अनुभवमां लीधो
त्यां ज्ञानीने पोताना आत्मा सिवाय बीजुं कांई ज साध्य नथी, बीजा कोई पदार्थमां
सुखबुद्धि नथी.
वहालो न कर; व्यवहारने वहालो न कर; बहारना कोई भावोने वहाला न कर; केमके
तेमां कल्याण नथी. आत्माना ज्ञानानंद स्वभावने ज वहालो करीने तेनो अनुभव कर,
ए ज कल्याण छे, ए ज मोक्षमार्ग छे, ए ज परम सुख छे. बीजे क््यांय सुख शोधवा
जईश मा.