Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९६ : २प :
(सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान) पमाय छे. आवा ज्ञानस्वरूपना अनुभव वगर
बीजा गमे ते उपाय करवामां आवे ते बधो राग छे–दुःख छे–संसार छे; तेमां क््यांय
तृप्ति नथी, शांति नथी, तेमां तो आकुळता छे. जेना वेदनथी तृप्ति थाय एवुं परम सुख
आत्माना अनुभवमां ज छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! ज्ञानस्वरूप आत्माने
ओळखीने तेनी प्रीति कर, तेमां संतुष्ट था, तेनो ज अनुभव करीने तृप्त था...एटले तने
परम आनंद थशे.
* आत्म अनुभवनो अपार महिमा *
ज्ञानना अनुभवनो अपार महिमा छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो! आ
ज्ञानस्वरूप आत्मा धर्मीना अनुभवमां आव्यो ते पोते ज अचिंत्य शक्तिवाळो देव छे;
ते चैतन्यचिंतामणि छे; जेम चिंतामणि वडे ईच्छितवस्तु मळे छे, तेम आ आत्मा
चैतन्यचिंतामणि छे, तेना सेवन वडे (ईच्छा विना ज) सम्यग्दर्शनथी मांडीने
केवळज्ञानना सर्वे प्रयोजन सिद्ध थई जाय छे. ज्यां सर्वसिद्धि करनारो पोतानो आत्मा
ज अनुभवमां आव्यो त्यां हवे बहारना बीजा कोई पदार्थोना परिग्रहथी के संकल्प–
विकल्पोथी धर्मीने शुं प्रयोजन छे? ज्ञानमूर्ति आत्मा प्राप्त थयो तेमां बधुं आवी गयुं,
हवे बहारना कोई भावनी वांछा धर्मीने नथी, क््यांय अंशमात्र आत्मबुद्धि रही नथी.
अहो, आवा आत्मअनुभवनो अपार महिमा छे.–आ अनुभव करवो ते ज करवानुं छे,
बीजुं कांई करवानुं नथी. सुख–आनंद के मोक्ष आवा अनुभवमां ज छे. अहो, ज्ञानीए
आवो अनुभव करीने पोतामां चैतन्यचिंतामणि प्राप्त कर्यो छे. सर्वज्ञशक्तिवाळो
चैतन्यदेव हुं छुं–एम जेणे अनुभव्युं तेने हवे बीजा कोनी सेवा करवानुं रह्युं?
सम्यग्दर्शन थयुं त्यां अनंतनिधानवाळो आखो आत्मा धर्मीए पकडी लीधो; आनंदनो
सागर, ज्ञाननो पिंड आत्मा ते धर्मीनो परिग्रह छे, ए सिवाय बीजा कोई पदार्थनो
परिग्रह धर्मीने नथी.
जेणे सम्यग्दर्शन वडे आवो आनंदमय आत्मा अनुभव्यो ते धर्मी थयो,
सर्वसिद्धिसंपन्न एवो चैतन्यदेव तेणे पोतामां ज देख्यो. विभावनुं