Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : : कारतक : २४९६
पडखुं छोडीने, चिदानंदस्वभावनुं पडखुं सेवतां जे आनंद अनुभवाय छे तेने धर्मी ज
जाणे छे; अज्ञानीने तेनी खबर नथी. अरे, आ भगवान आत्मामां शुं खामी छे के
बीजा पासे लेवा जवुं पडे? निजशक्तिथी परिपूर्ण भगवान आत्मा छे, तेने चिंतवतां–
अनुभवतां परम आनंद थाय छे. बीजा प्रश्नो छोडीने आवा आत्माना अनुभवनो ज
उद्यम कर; वारंवार तेमां उपयोगने वाळीने अनुभव कर. रागने अग्रेसर न कर,
चैतन्यभगवानने ज अग्रेसर कर. तेने अग्र करीने–मुख्य करीने तेने चिंतवतां
सम्यग्दर्शन अने सिद्धपद थाय छे. सादि–अनंतकाळना सिद्धपदनो आनंद आपवानी
जेनामां ताकात छे एवुं कोई होय तो ते पोतानो चैतन्यदेव ज छे, बीजा कोई पासेथी
आनंद मळे तेम नथी.–आम जाणनार धर्मी जीव पोताना आत्मा सिवाय अन्य कोई
पदार्थना परिग्रहने केम ईच्छे? न ज ईच्छे. तेने पोताथी सर्वथा भिन्न जाणे छे ने
ज्ञानस्वरूप आत्माने ज परिग्रहे छे–सर्व प्रकारे श्रद्धामां–ज्ञानमां–आचरणमां तेनुं ज
ग्रहण करे छे, ए सिवाय परभावना अंशनेय ग्रहता नथी, तेने पोतानुं ‘स्व’ मानता
नथी. मारुं ‘स्व’ तो मारो ज्ञानस्वरूप आत्मा ज छे.–आवो स्व–तत्त्वनो अनुभव
करवा जेवो छे. एवा अनुभवथी ज आत्मानुं परम उत्तम अतीन्द्रिय सुख अनुभवमां
आवे छे.
जेनी सेवाथी, जेना चिंतनथी जेना अनुभवथी केवळज्ञान अने सिद्धपद मळे
एवो पोतानो आत्मदेव जेने प्राप्त थयो, चैतन्यचिंतामणि प्राप्त थयो, ते धर्मात्मा हवे
बीजाने केम सेवे? बीजाने केम चिंतवे? पोताना आत्माने ज ध्येय बनावीने चिंतवे छे,
अने दिव्य शक्तिवाळो देव समजीने तेने ज सेवे छे. अरे, आवा आत्माना अनुभवनो
आ अवसर छे; आनंदनी प्राप्तिनो आ अवसर छे.
–आजे ज आवा आत्मानो अनुभव करो.
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आत्म अनुभवनी उत्तम प्रेरणा “आत्मधर्म”
वारंवार मेळववा माटे...........वांचो