
ओळखतो पण नथी.
कह्यो, अथवा लोको जेने धर्म माने छे–एवा पुण्यना शुभभावो तेनी पक्कड ज्ञानीने
नथी, तेनी ईच्छा ज्ञानीने नथी; ज्ञानी ते भावोने पोताना ज्ञानथी भिन्न जाणे छे.
जेने ज्ञानथी भिन्न जाण्या तेनुं स्वामीपणुं ज्ञानीने केम होय? ने जेनुं स्वामीपणुं न होय
तेनी ईच्छा केम होय? माटे ज्ञानीने पुण्यनी ईच्छा नथी; तेने ते परभावपणे जाणीने
छोडे छे.
‘आ पुण्य छे’ एम ज्ञान तेने जाणे छे; ते पुण्यने जाणनारुं ज्ञान पोते पुण्यरूप थतुं
नथी पण तेनाथी जुदुं ज रहे छे. ने आवा जुदा ज्ञानस्वरूपे ज धर्मी पोताने अनुभवे
छे.–एटले ते ज्ञानस्वभावने ज स्वपणे ग्रहे छे, ने ए सिवाय अन्य बधा पर भावोने
परपणे जाणीने छोडे छे.–आवी शुद्धदशाथी ज्ञानीने निर्जरा थाय छे, ने ते मोक्षमार्ग छे.
शुभरागने तो अनात्मा कह्यो, अज्ञानमय कह्यो, तेना वडे आत्मानुं ज्ञान थई शके नहीं.
तेनाथी भिन्न एवा ज्ञानना शुद्धउपयोग वडे ज आत्मा जणाय छे–अनुभवाय छे ने
प्रतीतमां आवे छे. चोथुं गुणस्थान आवा भावथी प्रगटे छे; शुभरागथी चोथुं
गुणस्थान नथी प्रगटतुं.
आदि अनंतगुणोना वैभवनो स्वामी आत्मा छे, ते ज आत्मानुं प्रभुत्व छे. आवा
निजवैभवनुं स्वामीपणुं छोडीने, जे जीव राग–द्वेष–मोहरूप अज्ञानभावनो स्वामी थवा
जाय छे ते अज्ञानी छे; अज्ञानभावोनो स्वामी अज्ञानी होय; ज्ञानी तो ज्ञानभावनो ज
स्वामी छे. ज्यां ज्ञानमय आत्मवस्तु लक्षमां आवी त्यां विकल्पमां–रागमां एकत्वबुद्धि
रही शके नहीं. अनंतगुण भंडारनो जे स्वामी थयो ते रागादि दोषोनो स्वामी थाय
नहीं. तेनी