Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : : कारतक : २४९६
धर्मी थवानो रस्तो
(भाईबीजना दिवसनुं प्रवचन)
धर्मी जीव केवो होय? अने केवा ज्ञान भावने लीधे तेने निर्जरा थाय? तेनुं आ
वर्णन छे. जेणे पोताना आत्माने एक ज्ञानमय स्वरूप अनुभव्यो छे, ने एना
सिवायना बधा भावोमां आत्मबुद्धि छूटी गई छे, एवा जीवने राग वगरनो जे
ज्ञानमयभाव ते धर्म छे, तेनाथी निर्जरा थाय छे.
प्रश्न:– आ तो जे धर्मी अने ज्ञानी थया छे तेमनी वात थई, पण अमारे ज्ञानी
थवा माटे शुं करवुं?
उतर:– भाई, ज्ञानीए जे कर्युं ते तुं कर. ज्ञानीए पोताना स्वभावने ओळखीने
रागादि परभावनो प्रेम छोड्यो, तेम तुं पण राग वगरना तारा ज्ञानानंद स्वभावने
ओळख, ने परभावनो प्रेम छोड,–ते ज धर्मी थवानी रीत छे. विभाव वगरनो
अनंतगुणथी भरेलो जे ज्ञायकभाव तेने गुरुगम द्वारा लक्षमां लईने अनुभव करवो–ते
ज ज्ञानी अने धर्मी थवानो रस्तो छे, ते ज मोक्षनो मार्ग छे.
जड लक्ष्मी के जड शरीरनी क्रियाओ, ते तो आत्मामां छे ज नहीं. हवे जे
रागद्वेषादि दुःखभावो ते पण आनंदना समुद्रमां नथी. आनंदनो समुद्र चैतन्यमूर्ति
आत्मा छे...तेनी सन्मुख थयो त्यां रागादि भावो रहेता नथी. आ रीते संयोगथी जुदो,
शुभ रागादि भावोथी पण जुदो, एकलो ज्ञानरसथी भरेलो पोतानो आत्मा, तेने
अंतरमां देखवो–अनुभववो ते अपूर्व मंगळ छे. धर्मीए आम कर्युं–तेनी बराबर
ओळखाण करीने पोतामां पण आवा भेदज्ञाननो भाव प्रगट करवो–ते धर्मी थवानो
रस्तो छे.
अहो, आवो जे ज्ञानस्वभाव, तेने चूकीने बहारनी कोईपण ईच्छा–अशुभ
के शुभ–तेना वेदनमां दुःख ज छे. पदार्थने भोगववानी ‘ईच्छा करनारो भाव’
पोते तो तेने भोगवतो नथी, अने हुं भोगवुं एवो जे भाव छे ते वखते तो ईच्छा
करनारो भाव नथी. ईच्छा करनारो भाव ने भोगवनारो भाव ते बन्ने कदी भेगा
थता नथी; माटे ईच्छाओ निरर्थक छे, दुःखरूप छे, आकुळता करनारी छे. ईच्छा
वगरनो जे ज्ञानस्वभाव छे तेमां पर्यायने एकाग्र करतां ज शांति, निराकुळ
आनंदनो अनुभव