
सिवायना बधा भावोमां आत्मबुद्धि छूटी गई छे, एवा जीवने राग वगरनो जे
ज्ञानमयभाव ते धर्म छे, तेनाथी निर्जरा थाय छे.
ओळख, ने परभावनो प्रेम छोड,–ते ज धर्मी थवानी रीत छे. विभाव वगरनो
अनंतगुणथी भरेलो जे ज्ञायकभाव तेने गुरुगम द्वारा लक्षमां लईने अनुभव करवो–ते
ज ज्ञानी अने धर्मी थवानो रस्तो छे, ते ज मोक्षनो मार्ग छे.
आत्मा छे...तेनी सन्मुख थयो त्यां रागादि भावो रहेता नथी. आ रीते संयोगथी जुदो,
शुभ रागादि भावोथी पण जुदो, एकलो ज्ञानरसथी भरेलो पोतानो आत्मा, तेने
अंतरमां देखवो–अनुभववो ते अपूर्व मंगळ छे. धर्मीए आम कर्युं–तेनी बराबर
ओळखाण करीने पोतामां पण आवा भेदज्ञाननो भाव प्रगट करवो–ते धर्मी थवानो
रस्तो छे.
पोते तो तेने भोगवतो नथी, अने हुं भोगवुं एवो जे भाव छे ते वखते तो ईच्छा
करनारो भाव नथी. ईच्छा करनारो भाव ने भोगवनारो भाव ते बन्ने कदी भेगा
थता नथी; माटे ईच्छाओ निरर्थक छे, दुःखरूप छे, आकुळता करनारी छे. ईच्छा
वगरनो जे ज्ञानस्वभाव छे तेमां पर्यायने एकाग्र करतां ज शांति, निराकुळ
आनंदनो अनुभव