Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९६ : ३१ :
थाय छे. आवा अनुभवरसनो स्वाद चाखनार धर्मी जीवने कोईपण पदार्थनी ईच्छा
रहेती नथी; एटले आखा संसारथी ते विरक्त छे, ने पोताना एक ज्ञायकभावमां ज
एकता करीने तेने ज सत्यपणे, भूतार्थपणे, स्वपणे, सुखपणे अनुभवे छे, तेमां ज
तेनो उत्साह छे; परभावो तरफनो उत्साह छूटी गयो छे, तेमांथी एकता छूटी गई छे,
तेने ते स्वपणे अनुभवतो नथी. आवी अंदरनी ज्ञानपरिणति ते धर्म छे; ने
भेदज्ञानना अभ्यास वडे आवी दशा प्रगट करवी ते धर्मी थवानो रस्तो छे.
स्वयंभूरमण नामना समुद्रमां असंख्याता माछलां आवा आत्मज्ञान सहित
अत्यारे पण छे. बहारनुं शरीर माछलानुं छे पण अंदर आत्मा तो देहथी जुदो
चैतन्यमूर्ति छे; ते पोताना स्वभावमां नजर करीने निर्विकल्प अनुभव सहित आवुं
आत्मज्ञान प्रगट करे छे ने अपूर्व आनंदनो भोगवटो करे छे. देहनो के रागनो
भोगवटो ज्ञानमां नथी. जे जीव आवुं ज्ञान प्रगट करे ते ज्ञानी छे, ने पोताना
ज्ञानभावरूपे ज परिणमे छे.
एने राग–द्वेष–क्रोधादि तो थाय छे ने?
थाय छे खरा, पण तेने ते ज्ञानथी भिन्नपणे अनुभवे छे, तेमां एकत्वबुद्धि
करता नथी. राग वखते रागथी जुदापणे ते पोताने देखे छे, जेम श्रीफळमां अंदर गोळो
जुदो छे–तेम धर्मी पोताना आत्माने रागथी जुदो ज चैतन्यगोळो देखे छे. अज्ञानीने
राग वखते रागथी जुदुं पोतानुं कोई अस्तित्व ज देखातुं नथी, राग ज देखाय छे, ज्ञान
देखातुं नथी; ज्ञानी–अज्ञानी वच्चेनो आ मोटो तफावत छे. शरीरादि ने रागादि समस्त
परभावोथी पोतानी चैतन्यवस्तुने जुदी जाणीने, ते चैतन्यवस्तुपणे पोतानो अनुभव
करवो–ते ज धर्मी थवा माटेनी ज्ञानकळा छे. एवी ज्ञानकळा प्रगट करवी ते आनंदमय
मंगल प्रभात छे, तेणे आत्मामां ज्ञानदीवडा प्रगट करीने दीवाळी उजवी, अने तेने ज
अपूर्व नवुं वरस आत्मामां बेठुं.–आ सुखनो पंथ छे.
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वैराग्य समाचार:– आ अंक छापतां छापतां एकाएक समाचार मळ्‌या छे के
जमशेदपुरमां श्री हेमकुंवरबेन नरभेराम कामाणीना सुपुत्र श्री धरमचंदभाई युवान
वयमां हार्टफेईलथी एकाएक ता. १३–११–६९ ना रोज स्वर्गवास पामी गया छे. तेओ
अवारनवार गुरुदेवनो लाभ लेता हता. आ क्षणिक संसारमां पींजरा जेवा आ देहथी
भिन्न, अमर आत्माना लक्षे वैराग्यभावना ए ज जीवने शरणरूप छे. वीतरागी देव–
गुरु–धर्मनी छायामां स्वर्गस्थ आत्मा आवुं शरण पामो.