Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : : कारतक : २४९६
* धर्मी पोतानी आत्मवस्तुने
केवी जाणे छे? *
‘धर्मीने ज्ञानमय एवा एक ज्ञायकभावनो ज सद्भाव छे’ एटले के
‘ज्ञायकभावपणे अनुभवमां आवती वस्तु ते ज हुं छुं’ एम धर्मी जाणे छे; ते
ज्ञायकभावना सद्भावमां रागादि परभावोनो अभाव छे. आवा आत्माना
अनुभवथी ज संसारनां दुःखथी छूटीने जीव आत्मानी शांति पामे छे. बाह्यवस्तुनुं
सुख अर्थात् पुण्यनुं सुख ते खरेखर सुख छे ज नहीं, एमां तो पराधीन
आकुळभाव ने दुःख छे. भगवान आत्मा जे ज्ञानानंदस्वरूपनो सागर, तेना
स्वाधीन अनुभवथी जे सुख अनुभवाय छे ते ज साचुं नीराकुळ सुख छे ते ज
आत्मानुं जीवन छे.
स्व–परनी भिन्नता जेणे जाणी नथी, ज्ञान अने ईच्छानी भिन्नता जेणे जाणी
नथी, तेने ईच्छा वगरना पोताना स्वभावसुखनुं वेदन क््यांथी थाय? ते तो ज्ञाननी
साथे ईच्छाने भेळवीने, अज्ञानने ज अनुभवतो दुःखी थाय छे. ज्ञानभावने पोतापणे
अनुभवे ते ज्ञानी कहेवाय; रागने–ईच्छाने के आहार–पाणीने पोतानां माने तेने ज्ञानी
कोण कहे?
धर्मीनी जे ज्ञानपर्याय छे ते आत्मा तरफ झुके छे, ने जे रागादि भावो छे–
ते तो बहार झुके छे, ते रागने आत्मा साथे तन्मयपणुं थतुं नथी. रागना
अभावमांय आत्मप्राप्ति थाय छे, राग न होय तेथी कांई आत्मानो अभाव थई
जतो नथी; राग वगर ज आत्मानुं जीवन छे. आत्मानुं अस्तित्व, आत्मानुं
जीवन तो ज्ञानमय छे; आत्मानुं अस्तित्व कांई रागद्वेषमय नथी. राग वखतेय
ज्ञानस्वरूप तो ते रागना अभाववाळुं ज छे. राग तो उपरना कचरा जेवो छे,
अंदर चैतन्य तळीयुं शुद्ध ज्ञानमय छे, तेने ध्येय बनाववुं जोईए. तेने ध्येय
बनावीने जे धर्मी थयो ते रागादिथी जुदो थयो, ते हवे रागने ईच्छे नहि, पुण्यने
ईच्छे नहि. पोताना एक चैतन्यभाव सिवाय बीजा कोई भावने धर्मी पोतापणे
देखता नथी, तेने पोताथी भिन्नपणे ज देखे छे.
अहो, रागथी जुदुं आवुं ज्ञानमय निजपद ज अनुभवमां लेवा जेवुं छे, ते
चैतन्यपदनो स्वाद महान आनंदरूप छे, आवा आनंदमय निजपदमां आत्मा रहेलो छे,
ते पोतामां नजर करे एटली ज वार छे. अंतरना निजपदमां नजर करतां ज