: ३६ : : कारतक : २४९६
भावोनो ज कर्ता छे. आ रीते स्वसन्मुख थईने ज्ञानस्वभावनो अने परना
अकर्तापणानो निर्णय ते क्रमबद्धपर्यायनो खरो निर्णय छे. ज्यां ज्ञानस्वभावनी
सन्मुखता न होय, के अकर्तापणानो निर्णय न होय त्यां क्रमबद्धपर्यायनो साचो निर्णय
होतो नथी. जीवद्रव्य पोतानी जीवपर्यायोमां तन्मयरूपे परिणमे छे, ने अजीव द्रव्य
पोतानी अजीव पर्यायोमां तन्मयरूपे परिणमे छे–एम बन्नेनी भिन्नतानुं भेदज्ञान
करीने, तेमना वच्चे कर्ताकर्मपणानो भ्रम छूटी जाय, तेने ज क्रमबद्धपर्याय समजाय छे.
प्रश्न:– धर्मद्रव्य पोते गति न करे छतां बीजाने गति करवामां निमित्त थाय?
उत्तर:– हा; जेम पुस्तक पोते ज्ञान नथी करतुं छतां ते ज्ञान करनारने ज्ञाननुं
निमित्त तो थाय छे. तेम धर्मास्तिकाय पोते गति नथी करतुं छतां गति करनारने
गतिमां ते निमित्त तो थाय छे.
प्रश्न:– मोक्ष क्यारे थाय?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी संपूर्ण आराधना करे त्यारे.
प्रश्न:– ‘आतमदेव’ ने कोनी साथे सरखाववामां आव्यो छे?
उत्तर:– दर्पणनी साथे–
जाणेबधुंय विश्व झळके बधुंय ज्यां,
दर्पण समान देव केवो हशे? (जैनबाळपोथी)
(शास्त्रोमां आ उपरांत बीजा पण सोनुं, सूर्य वगेरे अनेक पदार्थनी उपमा
आपीने आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं छे.)
प्रश्न:– चार अक्षरनुं नाम छे, यात्रानुं ए धाम छे. एना पहेला अने बीजा
अक्षरमां एक मजानुं फूल रहेलुं छे, तथा त्रीजा अने चोथा अक्षरमां खावानी वस्तु
रहेली छे...तो एनुं नाम कयुं? एम एक भाई पूछावे छे.
उत्तर:– तमारी मेळे शोधी लेजो...ने न आवडे तो वासुपूज्य भगवाननुं जीवन
याद करजो–एटले आवडी जशे.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शननो मारग शुं?
उत्तर:– आत्मानी साची निष्ठापूर्वक ज्ञानीओनो सत्समागम ते सम्यक्त्वनो
मारग छे.