Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९६ : ३७ :
तत्त्वोना श्रद्धानने सम्यक्त्व कह्युं छे परंतु ते तत्त्वश्रद्धान पण ज्ञानीना सत्समागमे ज
प्राप्त थाय छे. तेथी ज सम्यक्त्वनो मारग बतावतां श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
स्वच्छंद मत आग्रह तजी, वर्ते सद्गुरुलक्ष,
समकित तेने भाखियुं, कारण गणी प्रत्यक्ष.
प्रश्न:– बे नयोमां कया नयथी केवी रीते मोक्ष पामी शकाय?
उत्तर:– व्यवहारनय ए रीत जाण निषिद्ध निश्चयनय थकी,
निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी. (२७२)
समयसारनी आ गाथामां तमारा प्रश्ननो सरस उत्तर छे. तेनो अर्थ जाणवा
तथा विस्तारथी समजवा माटे आ गाथा उपरना पू. गुरुदेवनां प्रवचनो वांचजो...ते
बहु सरस छे, अने वळी पू. बेनश्री–बेनना सुहस्ते लखायेला छे, (समयसार–प्रवचन
पांचमुं पुस्तक) आचार्यदेव कहे छे के निश्चयनय शुद्ध आत्माना स्वद्रव्य–आश्रित छे.
तेथी तेनो आश्रय करनारा जीवो जरूर मुक्ति पामे छे. अने व्यवहारनय
परद्रव्यआश्रित छे, तेथी तेनो आश्रय करनारा कदी मोक्ष पामता नथी.
प्रश्न:– आहारक शरीर एटले शुं? ते कोने होय?
उत्तर:– छठ्ठा गुणस्थानवर्ती कोई मुनिने आहारक शरीर होय छे. (बधाने होतुं
नथी.) जेमने आहारकलब्धि प्रगटी होय एवा मुनिने क््यारेक सूक्ष्म तत्त्व संबंधी शंका
थाय अथवा तीर्थंकरना पंचकल्याणक वगेरेना दर्शननी के अढीद्वीपमां तीर्थयात्रानी
भावना थाय–तो तेवा प्रसंगे तेमना मस्तकमांथी एक हाथनुं सुंदर पूतळुं नीकळे छे तेने
आहारकशरीर कहे छे; तेना द्वारा ते मुनिराज तीर्थंकरादिना दर्शन, यात्रा, तथा शंकानुं
समाधान करी ले छे; अंतर्मुहूर्तमां ते पूतळुं पाछुं समाई जाय छे. (कोईकवार
आहारक््योगमां साधुनो स्वर्गवास थई जाय छे.) आ शरीरना निमित्ते मुनि पोतानी
शंकाने (
आहरति) दूर करे छे, अने सूक्ष्मअर्थने (आहारति) ग्रहण करे छे तेथी तेने
‘आहारक’ कहे छे.
प्रश्न:– साचा ज्ञाननो मार्ग क्यो?
उत्तर:– ज्ञानीनी उपासनापूर्वक भेदज्ञाननो अभ्यास...