
प्राप्त थाय छे. तेथी ज सम्यक्त्वनो मारग बतावतां श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
समकित तेने भाखियुं, कारण गणी प्रत्यक्ष.
बहु सरस छे, अने वळी पू. बेनश्री–बेनना सुहस्ते लखायेला छे, (समयसार–प्रवचन
पांचमुं पुस्तक) आचार्यदेव कहे छे के निश्चयनय शुद्ध आत्माना स्वद्रव्य–आश्रित छे.
तेथी तेनो आश्रय करनारा जीवो जरूर मुक्ति पामे छे. अने व्यवहारनय
परद्रव्यआश्रित छे, तेथी तेनो आश्रय करनारा कदी मोक्ष पामता नथी.
उत्तर:– छठ्ठा गुणस्थानवर्ती कोई मुनिने आहारक शरीर होय छे. (बधाने होतुं
थाय अथवा तीर्थंकरना पंचकल्याणक वगेरेना दर्शननी के अढीद्वीपमां तीर्थयात्रानी
भावना थाय–तो तेवा प्रसंगे तेमना मस्तकमांथी एक हाथनुं सुंदर पूतळुं नीकळे छे तेने
आहारकशरीर कहे छे; तेना द्वारा ते मुनिराज तीर्थंकरादिना दर्शन, यात्रा, तथा शंकानुं
समाधान करी ले छे; अंतर्मुहूर्तमां ते पूतळुं पाछुं समाई जाय छे. (कोईकवार
आहारक््योगमां साधुनो स्वर्गवास थई जाय छे.) आ शरीरना निमित्ते मुनि पोतानी
शंकाने (
उत्तर:– ज्ञानीनी उपासनापूर्वक भेदज्ञाननो अभ्यास...