Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of magazine: http://samyakdarshan.org/DcMv
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/GSNFLx

PDF/HTML Page 10 of 41

background image
: मागशर : २४९६ : ७ :
जेम ‘सत्ता’ एक गुण छे; ने वस्तु गुणवान छे; तेम ज्ञान एक गुण छे–
भाव छे, ने आत्मा गुणवान छे–भाववान छे. जेम आत्मवस्तु पोते उत्पाद–व्यय–
ध्रुवरूप छे तेम तेनो ज्ञानगुण पोताथी ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे. ज्ञानपणे नित्य
रहीने ते पोते एक अवस्थामांथी बीजी अवस्थारूपे बदले छे, एटले उत्पाद–व्ययने
करे छे.
अज्ञान टळीने सम्यग्ज्ञान थयुं के श्रुतज्ञान पलटीने केवळज्ञान थयुं, ते ज्ञाननी
पोतानी सत्ताथी थयुं छे, कोई बीजाना कारणे थयुं नथी. मिथ्यात्व टळीने सम्यक्त्व
थयुं–ते उत्पाद–व्यय जीवथी थया छे, ते वखते कर्ममां मिथ्यात्व अवस्था मटीने बीजी
(अकर्मरूप) अवस्था थई ते उत्पाद–व्यय पुद्गलना छे, ते पुद्गलनुं सत् छे; जीवनी
सत्तामां ते नथी एटले तेनो कर्ता पण जीव नथी. केमके जेना अस्तित्वमां जे होय ते
तेने करे.
अहा, जगतना बधा पदार्थो एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवता एवा त्रण
स्वरूप छे. एक समयमां त्रणने जाणे ते त्रणकाळने जाणे. सत् केवुं छे तेनी जगतने
खबर नथी. भगवाननी वाणीए आवुं सत् प्रसिद्ध कर्युं ए तेमनी सर्वज्ञतानी निशानी
छे.
शरीरनी, वचननी, कर्मनी जेटली क्रियाओ छे ते बधी पुद्गलना उत्पाद–व्यय–
ध्रुवमां छे, एटले पुद्गलना अस्तित्वमां ते थाय छे; जीवमां नहीं; पुद्गलो उत्पाद–
व्ययरूप थईने ते क्रियाने करे छे, जीव तेने करतो नथी. जीवनुं अस्तित्व पोताना
उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां छे.
अहो, पदार्थनुं आवुं सत् स्वरूप, ते जाणतां सम्यग्ज्ञाननी प्रसिद्धि थाय छे,
मिथ्याबुद्धि छूटीने वीतरागता थाय छे. सम्यग्ज्ञाननी प्रसिद्धि अने वीतरागता ते आ
शास्त्रनुं तात्पर्य छे. वस्तुना सत् स्वरूपने जाण्या वगर सम्यग्ज्ञान के वीतरागता थाय
नहीं.
सत् वस्तु पोते ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे. तो बीजो तेमां शुं करे? पोताना
उत्पाद–व्यय–ध्रुवथी बहार कोई वस्तुनुं अस्तित्व होतुं नथी, एटले परमां ते शुं करे?
अहो, वस्तुनुं अस्तित्व जाणे तो स्व–परनी तद्न भिन्नतारूप भेदज्ञान थाय, एटले
सम्यग्ज्ञाननी प्रसिद्धि थाय. आवा भेदज्ञान वडे ज राग–द्वेष–मोहने हणीने वीतरागता
थाय छे.