: ६ : : मागशर : २४९६
बदलती होय तो ज ए बधुं संभवे. माटे कहे छे के सत् एटले के विद्यमान वस्तु सर्वथा
नित्य के सर्वथा क्षणिक नथी.
वस्तु जो सर्वथा अनित्य होय तो, ते टके नहि, एटले ‘काले हतो ते हुं आजे छुं,
पूर्व भवमां हतो ते हुं ज आ भवमां छुं–’ एवुं प्रत्यभिज्ञान अर्थात् नित्यतानुं ज्ञान
क्यांथी थाय? वस्तुनी नित्यताने कारणे ज एवुं ज्ञान थाय छे. अने एवा ज्ञानवाळा
जीवो नजरे पण देखाय छे.
वळी वस्तु जो सर्वथा नित्य होय तो, एक अवस्था पलटीने बीजी
अवस्था क्यांथी थाय? बदल्या वगर मिथ्यात्व टळीने सम्यक्त्व क््यांथी थाय?
श्रुतज्ञान टळीने केवळज्ञान कयांथी थाय? वस्तुमां अनित्यताने कारणे
अवस्थाओ पलटे छे.
आ रीते वस्तु नित्य–अनित्यरूप छे. नित्य अनित्य एवा स्वरूपे ज
वस्तुनुं अस्तित्व छे. नित्यता होवाथी ध्रुवपणुं छे, अने अनित्यता होवाथी तेने
उत्पाद–व्यय पण छे. आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुव एवा त्रण स्वरूपे वस्तुनुं
अस्तित्व छे; तेने ज सत्ता कहेवाय छे. दरेक वस्तु स्वाधीनपणे आवी सत्तास्वरूप
छे.
जगतनी जेटली सत् वस्तुओ छे ते बधी पोते ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप
छे. तेनी पर्यायनो उत्पाद पोताथी ज छे, तेनी मिथ्यात्वादि पर्यायनो व्यय पण
पोताथी ज छे, बीजाथी नथी. तेनुं कायम टकवारूप ध्रुवपणुं पण पोताथी ज छे,
बीजाथी नथी.
आ एकला जीवनी वात नथी पण जगतना बधा पदार्थोनी वात छे. दरेक
पदार्थनुं सत्पणुं एटले के अस्तित्व पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुव एवा त्रणस्वरूपे छे.
एकना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां बीजानी सत्ता नथी, एटले बीजो तेना उत्पाद–व्यय–ध्रुवने
करे एवुं सत् नथी.
वस्तु पोताना स्वरूपथी उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे, तेम तेनी सत्ता पण उत्पाद–
व्यय–ध्रुव एवा त्रिलक्षणस्वरूप जाणवी. वस्तु भाववान छे, सत्ता तेनो भाव छे, तेमने
कथंचित् एकता छे, एटले जेवी वस्तु छे एवी ज तेनी सत्ता छे.