: मागशर : २४९६ : प :
सर्वज्ञे जोयेली सर्व पदार्थनी सत्ता
वस्तुनी स्वाधीन सत्ताने प्रसिद्ध करतो खुल्लो पत्र–
ले: वीतरागी संतो
बहारनी ‘सत्ता’ माटे लोको केटला वलखां मारे
छे?–पण जे स्वाधीन ‘सत्ता’ रूपे पोते सदाय छे ज, ते
स्व–सत्ताने जो ओळखे तो सम्यग्ज्ञान वडे अपूर्व शांतिनुं
वेदन थाय. हे जीव! तारी साची सत्ता वीतरागी संतो
तने समजावे छे. श्रीगुरु कहे छे के आ तो वीतरागी
संतोए लखेलो खुल्लो पत्र छे–के जे वस्तुना सत्स्वरूपने
प्रसिद्ध करे छे.
(पंचास्तिकाय गाथा ८ उपरनां प्रवचनोमांथी)
आ जगतमां जीव–पुद्गल वगेरे पांच अस्तिकायो, अने छठ्ठुं काळद्रव्य, एम छ
प्रकारनां द्रव्यो सत् छे, अस्तिरूप छे, सर्वज्ञदेवे तेमनुं स्वरूप प्रत्यक्ष जोयुं छे; अने
संतोए वीतरागमार्गमां ते प्रसिद्ध कर्युं छे.
जगतमां छ द्रव्यो सत् छे, अने तेने जाणनारो सर्वज्ञस्वभावी आत्मा छे.
छद्रव्यनुं अस्तित्व जे नथी मानतो ते आत्माना सर्वज्ञस्वभावने ज नथी जाणतो;
तेमज आत्माना सर्वज्ञस्वभावने जे नथी मानतो ते छ द्रव्योने पण यथार्थपणे जाणतो
नथी. सर्वज्ञ वगर छ द्रव्योनां अतीन्द्रिय स्वभावने जाणे कोण?
हवे, जगतमां जे अस्तिरूप द्रव्यो छे अने सर्वज्ञदेवे जे जोया छे, तेमनुं स्वरूप
केवुं छे? तेमनुं सत्पणुं केवुं छे? ते अहीं पंचास्तिकायनी आठमी गाथामां कहे छे.
आमां वस्तुना सत्स्वरूपनी अलौकिक सूक्ष्म वात छे.
जगतमां आत्मा के जड, जे कोई वस्तु सत् विद्यमान छे ते एकली नित्य नथी के
एकली अनित्य नथी.
जो वस्तु सर्वथा नित्य होय तो, ते कदी बदले ज नहि, एटले तेमां मिथ्यात्व
टळीने सम्यक्त्व थई शके नहीं, दुःख टळीने सुख थई शके नहि; कर्मनी मिथ्यात्व दशा
छूटीने बीजी दशा थाय नहीं. सत् वस्तु नित्य टकीने