: ८ : : मागशर : २४९६
आ गाथा द्वारा संतोए स्वाधीन सत्ताने प्रसिद्ध करी छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तुस्वरूपना जे कायदा छे ते कोईथी तोडी शकाता नथी.
वस्तु स्वरूपनी जे सत्ता, तेना अबाधित नियमोने कोई तोडी शके नहीं. जेम जीवना
अस्तित्वने फेरवीने तेने कोई अजीव बनावी शकतुं नथी, तेम जीवनी जे उत्पाद–व्यय–
ध्रुवरूप सत्ता तेमां बीजानी दखलगीरी चालती नथी. सिद्ध हो के साधक हो, केवळज्ञानी
हो के अज्ञानी हो, जीव हो के जड हो, ते दरेकनुं उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणे होवापणुं पोताथी
ज छे, पोतानी ज सत्ताथी पदार्थो तेवा छे. जगतमां एवी कोई सत्–वस्तु नथी के जे
उत्पाद–व्यय–ध्रुवता वगरनी होय. त्रेवडी एटले के उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप त्रिलक्षणवाळी
ज सत् वस्तु छे.
* बधी वस्तुओ आवी उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप सत् छे. (अर्थसमय)
‘सत्’ एम कहेतां तेमां बधा पदार्थो आवी जाय छे. (शब्दसमय)
अने ‘सत्’ एवा ज्ञानमां सर्व पदार्थोनुं ज्ञान आवी जाय छे. (ज्ञानसमय)
–आम पदार्थनुं स्वरूप, तेने कहेनारी वाणी, अने तेने जाणनारुं ज्ञान, ए रीते
अर्थसमय–शब्दसमय–ज्ञानसमय ए त्रणेनो मेळ छे. आवुं स्वरूप जाणतां सम्यग्ज्ञान
अने वीतरागता थाय ते धर्म छे, ते मोक्षमार्ग छे.
जगतमां सर्वज्ञदेवे जोयेला पदार्थोना सत् स्वरूपनुं आ कथन छे. जीव–पुद्गल
वगेरे छप्रकारनी वस्तुओ छे; ते वस्तुओ भूत–वर्तमान अने भावि पोतपोतानी
पर्यायोरूपे परिणमती होवा छतां अनित्य नथी, केमके पोतपोताना निश्चित स्वरूपने ते
कदी छोडती नथी तेथी नित्य छे. आम नित्य–अनित्य स्वरूप जे वस्तु छे ते सत् छे;
तेने ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणुं छे, अने ते गुणपर्यायवान छे. आवा वस्तुस्वरूपनुं आ
वर्णन छे.
अनंत द्रव्यो जगतमां एकसाथे रहेलां होवां छतां पोतपोताना निश्चित स्वरूपने
कोई छोडतुं नथी, एटले अनेक द्रव्यो कदी एकपणुं पामता नथी. चेतनमय जीव अने
अचेतन एवां कर्म तेमने व्यवहारथी एकपणुं होवा