Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९६ : ९ :
छता बंनेनुं स्वरूप जुदुं ज छे. एकबीजानां स्वरूपने कोई ग्रहतां नथी एटले बंने
जुदां ज छे; बंनेनुं अस्तित्व जुदुं ज छे. जीवना उत्पाद–व्यय–ध्रुव जीवमां छे, ने
पुद्गलना उत्पाद–व्यय–ध्रुव पुद्गलमां छे. बंनेनुं अस्तित्व जुदुं पोतपोताना
स्वरूपमां ज छे. एकना उत्पाद–व्यय–ध्रुव बीजानां कारणे नथी. आवुं वस्तुस्वरूप
जाणे तो परथी भिन्न पोतानी स्व–सत्ता सामे नजर करतां भेदज्ञान अने
वीतरागता थाय. तेनुं नाम धर्म छे.
वस्तुनुं अस्तित्व कहो के वस्तुनी सत्ता कहो, के गुण–पर्याय कहो, अथवा
उत्पाद–व्यय ने ध्रुव कहो, ए बधुं जुदुं नथी. पण एक ज छे. वस्तुना ‘सत्’ मां बधुं
समाय छे.
जगतना बधा पदार्थो त्रिलक्षणवाळां छे एटले के उत्पाद–व्यय ने ध्रुव एवा
स्वभाव सहित वर्ते छे. क्षणेक्षणे नवी पर्यायनो उत्पाद थवो ते वस्तुनो स्वभाव ज छे,
तो बीजो ते उत्पादमां शुं करे?
सामान्यपणे ‘सत्’ एम कहेतां जगतना बधा पदार्थो तेमां आवी जाय छे, केमके
बधुं सत् छे. पण ज्यारे विशेष भेद पाडीने तेमने भिन्न–भिन्न स्वरूपे (एटले के
अवांतर सत्तारूपे) जोवामां आवे त्यारे दरेकनुं स्वरूप जुदुं जुदुं छे. जीवनुं अस्तित्व
सदा जीवरूप छे, अने पुद्गलनुं अस्तित्व सदा पुद्गलरूप छे. एम दरेक पदार्थ
पोतपोताना स्वरूप–अस्तित्वपणे सत् छे; ने बीजारूपे असत् छे.
हवे वस्तुना आखा सत्ने जुओ तो ते एक साथे उत्पाद–व्यय–ध्रुव एवा त्रण
लक्षणवाळुं ‘त्रिलक्षण’ छे. पण तेमां एक उत्पादने जुओ तो ते उत्पादलक्षणवाळो ज
छे, उत्पादरूप जे भाव छे ते पोते व्यय के ध्रुवरूप नथी, तेथी ते उत्पादने त्रिलक्षणपणुं
नथी, तेने तो एक उत्पादलक्षणपणुं ज छे. ए ज रीते व्ययनुं लक्षण व्यय छे, ने ध्रुवनुं
लक्षण ध्रुवता छे; आ रीते वस्तुना ऊपजता भावनुं, विणशता भावनुं अने टकता
भावनुं, दरेकनुं जुदुं जुदुं एक लक्षण छे; ने उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप आखी सत्वस्तुने
त्रिलक्षणपणुं छे.
स्वसत्ता ने परसत्ता दरेकना उत्पाद–व्यय–ध्रुव पोतपोताना अस्तित्वमां छे.
शरीरना पुद्गलना के बीजा जीवना उत्पाद–व्यय–ध्रुव में कर्या एम जे