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जाण्युं नथी. ज्यां वस्तु पोते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे त्यां तेनो कोई अंश बीजो आपे, के
बीजाने लीधे थाय–ए वात रहेती नथी. वस्तुने सत् ज त्यारे कहेवाय के ज्यारे ते पोते
उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप होय.
तेनो उत्पाद छे, ने आ जीवने शुभराग थयो ते आनो उत्पाद छे; पोतपोतानी
उत्पादपर्यायमां दरेकनुं अस्तित्व छे. आवा भिन्न अस्तित्व उपरांत, रागथी पण
पोताना ज्ञायकभावनुं भिन्नपणुं धर्मीजीव जाणे छे. ज्ञायकस्वभावमात्र भाव हुं छुं एम
धर्मी अनुभवे छे.
नथी. सत्नी अवस्थानी उत्पत्ति परने लईने माने ते सत्नो नाश (सत्तानाश–
सत्यानाश) करे छे. सत्ता पोते उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळी छे, तेनो एक्केय अंश परने
लीधे मानतां ते मान्यतामां सत्नो नाश थाय छे, एटले के मान्यतामां मिथ्यात्व
थाय छे. आ मिथ्यात्व ते मोटो दोष छे, पण जगतने ते दोषनी खबर नथी, ने तेने
टाळ्यां पहेलां बीजा अव्रतादि दोष टाळवा मथे छे. पण मिथ्यात्व टळ्या वगर बीजा
दोष कदी टळे नहीं, अने सत्नुं यथार्थ स्वरूप जाण्या वगर मिथ्यात्व टळे नहीं.
सत्नी समजण ते मूळधर्म छे.
तो तेने जाणवानी ताकातवाळुं ज्ञान पण सत् छे. ज्ञाननी प्रतीतपूर्वक पदार्थोनुं
यथार्थ ज्ञान थाय छे. एटले ज्ञाननी प्रसिद्धि ते शास्त्रनुं तात्पर्य छे. आ
समयव्याख्या (एटले के शास्त्रनी टीका) सम्यग्ज्ञानरूपी निर्मळ ज्योतिनी जननी
छे;–आमां कहेलुं वस्तुस्वरूप ओळखतां सम्यग्ज्ञानरूपी ज्योत प्रगटे छे–एम त्रीजा
कळशमां आचार्यदेवे कह्युं छे. भगवाननी दिव्यवाणीमां शुद्ध आत्मानी उपलब्धिनो
मार्ग कह्यो छे; तेथी ते