Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९६ : ११ :
वाणी हितकर छे अने परमार्थरसिक जीवोना मनने हरनारी छे, मधुर छे. ते वाणीमां
बतावेल वस्तुस्वरूपनुं आ वर्णन छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुव एवा त्रण लक्षणरूप सत्पणुं दरेक वस्तुमां छे; सिद्धमां पण
त्रण लक्षण छे ने एक परमाणुमां पण त्रणलक्षणपणुं छे, उत्पाद–व्यय–ध्रुव वगरनुं कोई
द्रव्य होय नहीं. बधा पदार्थो सत् छे–एनी प्रतीत करवी ते ज्ञाननुं काम छे. जगतमां
छद्रव्यो छे.–ते एम जाहेर करे छे के ज्ञाननुं एवडुं सामर्थ्य छे के छद्रव्योना अस्तित्वने
जाणे.–आ रीते सत्ने जाणतां ज्ञाननी प्रसिद्धि थाय छे. छद्रव्योने जे नथी मानता
तेओने ज्ञाननुं बेहद सामर्थ्य केटलुं छे तेनी ज खबर नथी. ‘अहीं ज्ञानसमयनी प्रसिद्धि
अर्थे शब्दसमयना संबंधथी अर्थसमय कहेवानो ईरादो छे’–एम त्रीजी गाथामां
आचार्यदेवे कह्युं छे.
* * * * *
सत्तारूप वस्तुने जेम सत्पणुं छे, तेम असत्पणुं पण छे; ए रीते सत्ता ते
प्रतिपक्षसहित छे. स्वचतुष्टयपणे जे सत् छे, परचतुष्टयपणे ते ज असत् छे. एम
वस्तुमां सत्पणुं ने असत्पणुं बंने एकसाथे छे. सत्ना जेटला अवांतर भेदो छे तेओ
पण पोतपोताना स्वरूपथी सत् छे. एक अंश ते आखा सत्रूप नथी, तेथी ते अपेक्षाए
तेने असत्पणुं छे.
वस्तुनी सत्तामां त्रिलक्षणपणुं तेमज अत्रिलक्षणपणुं बंने एक साथे छे. आखा
सत् अपेक्षाए ते एकसाथे उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूपे होवाथी तेने त्रिलक्षणपणुं छे; अने
उत्पादने, व्ययने तथा ध्रुवने दरेकने पोतपोतानुं एक ज लक्षण होवाथी त्रिलक्षणपणुं
नथी, तेथी ‘अत्रिलक्षण’ पणुं छे.
सामान्य सत्मां सर्व पदार्थो आवी जाय छे, तेथी महासत्ता तरीके सत्ता एक
छे; ने दरेक पदार्थनी स्वरूपसत्ता भिन्नभिन्न छे, माटे सत्ताने अनेकपणुं पण छे. आ
रीते सत्तामां एकपणुं तेमज अनेकपणुं बंने समाय छे. अथवा वस्तुपणे एक अने
गुण–पर्यायपणे अनेक–एम दरेक सत्वस्तुमां एक–अनेकपणुं रहेलुं छे.