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बतावेल वस्तुस्वरूपनुं आ वर्णन छे.
द्रव्य होय नहीं. बधा पदार्थो सत् छे–एनी प्रतीत करवी ते ज्ञाननुं काम छे. जगतमां
छद्रव्यो छे.–ते एम जाहेर करे छे के ज्ञाननुं एवडुं सामर्थ्य छे के छद्रव्योना अस्तित्वने
जाणे.–आ रीते सत्ने जाणतां ज्ञाननी प्रसिद्धि थाय छे. छद्रव्योने जे नथी मानता
तेओने ज्ञाननुं बेहद सामर्थ्य केटलुं छे तेनी ज खबर नथी. ‘अहीं ज्ञानसमयनी प्रसिद्धि
अर्थे शब्दसमयना संबंधथी अर्थसमय कहेवानो ईरादो छे’–एम त्रीजी गाथामां
आचार्यदेवे कह्युं छे.
वस्तुमां सत्पणुं ने असत्पणुं बंने एकसाथे छे. सत्ना जेटला अवांतर भेदो छे तेओ
पण पोतपोताना स्वरूपथी सत् छे. एक अंश ते आखा सत्रूप नथी, तेथी ते अपेक्षाए
तेने असत्पणुं छे.
उत्पादने, व्ययने तथा ध्रुवने दरेकने पोतपोतानुं एक ज लक्षण होवाथी त्रिलक्षणपणुं
नथी, तेथी ‘अत्रिलक्षण’ पणुं छे.
रीते सत्तामां एकपणुं तेमज अनेकपणुं बंने समाय छे. अथवा वस्तुपणे एक अने
गुण–पर्यायपणे अनेक–एम दरेक सत्वस्तुमां एक–अनेकपणुं रहेलुं छे.