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पात्र छे. अरे, आवा वस्तुस्वभावनो अनादर करीने बीजुं गमे ते करे ने धर्म मानी
ल्ये–पण तेने धर्म थाय नहीं. सत्तानी महान खाण, अस्तिकायनुं स्वरूप तेनुं आ वर्णन
छे. उत्पाद ते ध्रुवने देखे छे भले, पण उत्पाद पोते ध्रुव नथी; ध्रुवनुं लक्षण ध्रुव छे ने
उत्पादनुं लक्षण उत्पाद छे. ‘सत्’ परमेश्वर आत्मा तेमां आ बधुं समाय छे. अरे भाई,
तारा चैतन्यनिधानमां नजर तो कर.
अवस्थानो उत्पाद थयो एम नथी. ते परमाणुओमां ज उष्ण गुणनो तेवो उत्पाद
पोताना कारणे छे. स्पर्शगुण ध्रुव छे, ते ध्रुवना कारणेय उत्पाद नथी; उत्पादनुं लक्षण
उत्पाद ज छे. आवा वस्तुस्वरूपना ज्ञानमां एकली वीतरागता घूंटाय छे. आवा सत्ना
ज्ञानवडे ज धर्मनी शरूआत थाय छे. आवा ज्ञान पछी स्वरूपमां चरवुं ते चारित्र छे.
चैतन्यहंस रागना चारा न चरे, ए तो वीतरागी आनंदरूपी मोतीनां चारा चरनारो
छे. आवो चैतन्य–महाप्रभु ते रागनी सिफारस वडे मळे एवो नथी. रागना विकल्पने
तो आंधळो कह्यो छे–अचेतन कह्यो छे, तेना वडे चैतन्यप्रभु अनुभवमां केम आवे?
आ तो वीतरागनो मार्ग छे.
पुद्गल छे, एम जीव सत्ता, पुद्गल सत्ता वगेरे अनेक सत्ता छे.
पदार्थस्थित छे. दरेक पदार्थनुं अस्तित्व पोतपोताना निश्चित एक स्वरूपमां ज छे,
एटले अवांतर सत्ताने एक पदार्थस्थित कहेल छे.
विश्वरूप कहेतां जड ने चेतन बधुं एकमेक थई जाय छे एम न समजवुं. पण जड
छे, चेतन छे–एम विश्वना बधा पदार्थोने एक साथे सत्पणे लक्षमां लेवा ते
महासत्ता छे.