Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : : मागशर : २४९६
राजचंद्रजीए कह्युं छे. सदैव सूक्ष्म बोधनो अभिलाषी होय ते जीव महावीरना बोधने
पात्र छे. अरे, आवा वस्तुस्वभावनो अनादर करीने बीजुं गमे ते करे ने धर्म मानी
ल्ये–पण तेने धर्म थाय नहीं. सत्तानी महान खाण, अस्तिकायनुं स्वरूप तेनुं आ वर्णन
छे. उत्पाद ते ध्रुवने देखे छे भले, पण उत्पाद पोते ध्रुव नथी; ध्रुवनुं लक्षण ध्रुव छे ने
उत्पादनुं लक्षण उत्पाद छे. ‘सत्’ परमेश्वर आत्मा तेमां आ बधुं समाय छे. अरे भाई,
तारा चैतन्यनिधानमां नजर तो कर.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवता ते वस्तुनी स्वतंत्रताने जाहेर करे छे. अग्निना उत्पाद–व्यय–
ध्रुव अग्निमां छे, पाणीना उत्पाद–व्यय–ध्रुव पाणीमां छे. अग्निना कारणे पाणीमां उष्ण
अवस्थानो उत्पाद थयो एम नथी. ते परमाणुओमां ज उष्ण गुणनो तेवो उत्पाद
पोताना कारणे छे. स्पर्शगुण ध्रुव छे, ते ध्रुवना कारणेय उत्पाद नथी; उत्पादनुं लक्षण
उत्पाद ज छे. आवा वस्तुस्वरूपना ज्ञानमां एकली वीतरागता घूंटाय छे. आवा सत्ना
ज्ञानवडे ज धर्मनी शरूआत थाय छे. आवा ज्ञान पछी स्वरूपमां चरवुं ते चारित्र छे.
चैतन्यहंस रागना चारा न चरे, ए तो वीतरागी आनंदरूपी मोतीनां चारा चरनारो
छे. आवो चैतन्य–महाप्रभु ते रागनी सिफारस वडे मळे एवो नथी. रागना विकल्पने
तो आंधळो कह्यो छे–अचेतन कह्यो छे, तेना वडे चैतन्यप्रभु अनुभवमां केम आवे?
आ तो वीतरागनो मार्ग छे.
छए द्रव्यनी सामान्य सत्ताने जोतां ‘बधुं छे’ एम सत्ता एक छे; पण तेमां
छए द्रव्यनी पृथक्पृथक् सत्ताने जोतां सत्ता अनेक छे; जीव ते जीव छे, पुद्गल ते
पुद्गल छे, एम जीव सत्ता, पुद्गल सत्ता वगेरे अनेक सत्ता छे.
महासत्ता एक साथे बधा पदार्थोने लक्षित करे छे एटले तेने सर्व पदार्थस्थित
कहेवाय छे. अने अवांतर सत्ता प्रत्ये पदार्थने भिन्न पाडीने लक्षित करे छे तेथी ते एक
पदार्थस्थित छे. दरेक पदार्थनुं अस्तित्व पोतपोताना निश्चित एक स्वरूपमां ज छे,
एटले अवांतर सत्ताने एक पदार्थस्थित कहेल छे.
महासत्तामां बधुं समाय छे एटले ते सविश्वरूप छे अने अवांतर सत्ता
पोतपोताना एकेक रूपवाळी छे. ए रीते सत्ताने विश्वरूपपणुं तेमज एकरूपपणुं छे.
विश्वरूप कहेतां जड ने चेतन बधुं एकमेक थई जाय छे एम न समजवुं. पण जड
छे, चेतन छे–एम विश्वना बधा पदार्थोने एक साथे सत्पणे लक्षमां लेवा ते
महासत्ता छे.