: मागशर : २४९६ : १प :
एक वस्तुमां अनंतगुणपर्यायो छे, ते प्रत्येक पोतपोताना निश्चित एक एक
स्वरूपे छे. एवी अनंती एकेक पर्यायो थईने महासत्ताने अनंत पर्यायपणुं छे. एक
पर्याय ते अवांतर सत्ता छे. महासत्ता अनंत पर्यायमय छे; ने अवान्तर सत्ता एक
पर्यायमय छे.–एम बे नय द्वारा बंने प्रकारे सत्ताने ओळखाय छे, तेथी आ बधुं कथन
निर्दोष छे. आवुं ज वस्तुस्वरूप छे.
वस्तुनुं अस्तित्व पोताने लईने छे, परने लईने तेनुं अस्तित्व नथी, के ईश्वर
वगेरे तेना कर्ता नथी. सत्नुं अस्तित्व पोताथी ज छे. सत्नी ओळखाण थाय तो
सम्यग्दर्शन थई जाय.
‘सत्’ छे तेनी आ प्ररूपणा छे (सत्पदप्ररूपणा छे.) शुं आ शरीर छे माटे
अंदर आत्मानुं अस्तित्व छे? ना; शरीरनुं अस्तित्व शरीरमां छे, आत्मामां तेनुं
अस्तित्व नथी; अने आत्मानुं अस्तित्व आत्मामां छे, शरीरमां तेनुं अस्तित्व
नथी; आम बंनेनुं स्वतंत्र भिन्न भिन्न अस्तित्व छे. ए ज प्रमाणे, शुं आ ईन्द्रियो
छे माटे ज्ञाननुं अस्तित्व छे? ना; ज्ञाननुं अस्तित्व आत्मामां छे, ने ईन्द्रियोनुं
अस्तित्व जडमां छे; कोईमां बीजानुं अस्तित्व नथी, ने कोईना कारणे बीजानुं
अस्तित्व नथी. सौ पोतपोताथी सत् छे. अहो, केटली स्वतंत्रता! आवुं स्वतंत्र
अस्तित्व समजे तो, ईन्द्रिय वगर ज्ञान न थाय–एवी बुद्धि मटी जाय; एटले
सम्यग्ज्ञान थाय ने शांति प्रगटे.
आत्मा जेनो साचो–तेनुं बधुं साचुं
(चंद्रने शोधवा करतां आत्माने शोध)
पू. श्री कहानगुरु वारंवार कहे छे के–चंद्र वगेरे बाबतमां
वीतराग शास्त्रोमां जे कह्युं छे ते यथार्थ ज छे; आपणे ते मेळवी न
शकीए तेथी वीतराग शास्त्रोमां शंका न कराय. अने आत्माना स्वरूप
बाबतमां वीतराग शास्त्रोमां जे परम सत्य कथन छे ते तो आपणे
पण पोताना स्वानुभवथी मेळवी शकीए छीए. अतीन्द्रिय एवा
चैतन्यस्वभाव बाबत जेमनुं कथन परम सत्य छे ने अनुभवमां आवे
एवुं छे,–तो चंद्र–सूर्य वगेरे बाबत पण तेमनुं कथन यथार्थ ज छे.
बाकी ते चंद्रनी शोध पाछळ पडवा करतां आत्माने शोध ने! तेनी तो
अत्यारे प्राप्ति (अनुभव) थई शके छे.