Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : : मागशर : २४९६
(समयसार कळश १प७ थी १६०)
आत्मा चैतन्य–चमत्काररूप वस्तु छे. चैतन्यभावमां जड नथी, ने राग पण
चैतन्यभावमां नथी. चैतन्यनी चमक रागथी ने जडथी जुदी छे.
(१) धर्मीनुं वेदन
जे पोते नथी, अने पोतामां जे नथी, एवा परद्रव्योने के क्रोधादि परभावोने
धर्मी जीव पोतारूपे केम अनुभवे? जेमां पोते वर्ते छे, अने जे पोतामां छे एवी निर्मळ
ज्ञानदशारूपे धर्मी पोताने वेदे छे.
(२) धर्मी आनंदने ज वेदे छे
शरीर पर धोको पडे के शरीर पर चंदन चोपडाय, तेनुं वेदन जीवने नथी. अने
रागथी जुदो पडीने निर्मळ परिणतिमां जे आव्यो एवा धर्मीने पोताना ज्ञानआनंद
सिवाय कोईनुं वेदन होतुं नथी. केमके आत्माना ज्ञानमां बीजा कोई परभावनो प्रवेश
ज नथी पछी तेनुं वेदन ज्ञानमां केम होय? आवुं जे आनंदमय ज्ञानवेदन तेना वडे
ज्ञानी ओळखाय छे.
(३) सामान्य–विशेषनी एकतारूप शुद्धता
जेवुं शुद्ध सामान्य ध्रुव छे तेना तरफ वळीने एकाग्र थतां पर्यायमां पण तेवो ज
शुद्ध थईने आत्मा परिणम्यो,–आवी सामान्य विशेषनी एकतारूप शुद्धतामां वच्चे
अशुद्धता क््यांथी आवे? अने सामान्यमां एकाग्र थयेली ते शुद्ध पर्याय, अशुद्धभावोने
केम करे? के तेने केम वेदे? अशुद्धताथी तो तेने अत्यंत भिन्नता छे. शुद्धस्वभाव तरफ
वळेली ते पर्यायमां अशुद्धतानो अभाव छे. पोतामां जेनो अभाव छे तेने ते कई रीते
करे के भोगवे?
(४) सूर्यमां अंधारुं नहीं तेम चैतन्यप्रकाशमां राग नहीं
अज्ञानी रागने अने जडनी क्रियाने पोताना ज्ञानस्वरूपमां प्रवेश कराववा मांगे
छे, एटले तेने ते पोतानुं कार्य माने छे, तथा तेनाथी पोताने ज्ञाननो लाभ थवानुं माने
छे. पण द्रव्यथी ने पर्यायथी सहज ज्ञानस्वरूप आत्मा, तेमां रागनो के जडनो