Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९६ : १७ :
प्रवेश ज नथी, पछी ते कार्य पोतानुं केम होय? पोतानुं कार्य तो ज्ञानरूप छे.
सूर्यनुं कार्य अंधारुं न होय, सूर्यनुं कार्य तो प्रकाश होय; तेम चैतन्यसूर्य आत्मा,
ते जडने के रागरूपी अंधकारने करतो नथी, ते तो चमकता चैतन्यप्रकाशरूप कार्यने
ज करे छे.
(प) गुप्त चैतन्यघरमां रागनो के जडनो प्रवेश नथी
शरीरमां रोग थाय–वेदना थाय, पण मारा चैतन्यमां एनुं अस्तित्व क््यां
छे? मारामां तेनो प्रवेश नथी पछी मने तेनो भय केवो? एक सिंह के वाघ
बहार ज होय, ने मजबुत घरमां ते प्रवेशी शकतो ज न होय पछी तेनो भय
शेनो? तेम धर्मी जीव निर्भयपणे पोताना चैतन्यघरमां बेठा छे; ते मजबुत
चैतन्यघर कोईथी हणी शकातुं नथी, ने तेमां कोई बीजानो (रागनो के जडनो)
प्रवेश थई शकतो नथी; पछी धर्मीने कोनो भय? ते तो निर्भयपणे निःशंकपणे
ज्ञानरूपे ज पोताने जाणे छे–अनुभवे छे. ज्ञानपणे हुं सदाय सत् छुं. मारा
ज्ञानना वेदनमां ज आनंद छे, प्रभुता छे, महिमा छे; ते स्वयं रक्षित छे, बीजा
कोई रक्षकनी एने जरूर नथी.
* * * * *
(का. सुद १२ भाईश्री हिंमतलाल हरगोविंददासना मकानना वास्तु प्रसंगे)
(६) आत्मानुं जीवन चैतन्यथी छे, शरीरथी आत्मा जीवतो नथी
भगवान आत्मा अतीन्द्रिय महान पदार्थ छे; ते चैतन्यप्राणथी शाश्वत जीवनारो
छे. जेणे पोतानुं आवुं अस्तित्व स्वीकार्युं तेने जड ईन्द्रिय वगेरे प्राणो साथे एकताबुद्धि
रहेती नथी केमके ते जड प्राण कांई आत्माना जीवननुं कारण नथी. शरीरादि जड प्राण
तो आत्माथी जुदा छे ने जुदा पडी जाय छे. आत्मा जो तेनाथी जीवतो होय तो
आत्माथी ते जुदां केम पडे? तेना होवापणे कांई आत्मानुं होवापणुं नथी. आत्मानुं
होवापणुं पोताना चैतन्यप्राणथी ज छे. आवा चैतन्यजीवनने जेणे जाण्युं ते
सम्यग्द्रष्टिने मरणनो भय केम होय? मरण ज मारुं नथी पछी मरणनो भय केवो?
आम धर्मी जीव मरणना भयथी रहित, निःशंक अने निर्भय वर्ते छे. जगतने मरण
तणी बीक छे–पण ज्ञानीने तो आनंदनी लहेर जो. केमके पहेलेथी ज पोताने देहथी जुदो
ज जाण्यो छे.