Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २० : : मागशर : २४९६
अने मुनिदशा
पहेलां ज्ञ–स्वभावनी
प्रतीत केवी होय? तेनुं वर्णन
(मोक्षप्राभृत गा. ९८ उपरनुं प्रवचन)
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सम्यग्दर्शन वगर बाह्यलिंग अने व्रतादिने निष्फळ कह्या छे. सम्यग्दर्शनपूर्वक जे
जिनलिंग एटले के मुनिदशा ते महा पूज्य छे, ते मोक्षसाधन छे. परंतु जेओ पोताने
मुनि मनावे छे अने मुनिना मूळगुण–दिगंबरदशा वगेरेनुं पालन तो करता नथी, तो
एवा जीवो जिनलिंगनी विराधना करीने मिथ्याद्रष्टि थई जाय छे; तेओ मुनि तो नथी,
पण मुनिमार्गना विराधक छे. आचार्यदेव कहे छे के भाई! मुनिपणुं न पाळी शकाय तो
तेनी भावना राखीने, तेनुं स्वरूप जेम छे तेम बराबर समजवुं जोईए. साची श्रद्धावडे
पण तारुं सम्यक्त्व अने मोक्षमार्ग टकी रहेशे. पण जैनमार्गना मुनिपणानुं स्वरूप ज
विपरीत मानी लेवुं ते तो श्रद्धानो मोटो दोष छे; मुनिपणुं न लई शके अने सम्यक् श्रद्धा
बराबर राखे तो तेने चारित्रनो अल्पदोष होवा छतां ते मोक्षमार्गमां छे. मुनिपणानुं
मोटुं नाम धरावीने प्रतिज्ञा तोडे–व्यवहारमां पण अन्यथा वर्ते अने कहे के मुनिपणुं तो
आवुं ज होय, तो ते जैनशासननी प्रणालिका बगाडे छे; आगममां जे कह्युं छे तेने पण
ते मानतो नथी. ते ऊंधुंं माने तेथी कांई जैनदर्शननुं स्वरूप बीजुं नहीं थई जाय, मात्र
तेना आत्मानुं अहित थशे.
अहो, मुनिदशा तो धन्य छे, पूज्य छे. ईन्द्र अने चक्रवर्ती पण तेने आदरे छे.
सम्यग्दर्शन सहित स्वरूपमां लीन थईने जेणे मुनिदशा प्रगट करी ते तो धन्य छे; त्यां
विकल्पनी घणी ज मंदता छे, देह उपरनी ममता छूटी गई छे, त्यां देह उपर वस्त्र धारण
करवानी वृत्ति ज ऊठती नथी. वस्त्र लेवानी वृत्ति ऊठे तो मुनिदशा होय नहि; अने जो
त्यां मुनिदशा माने तो समकित पण होय नहि. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्ग
कह्यो, तेमां तेनाथी विपरीत मिथ्यात्वनो अभाव, रागनो अभाव, अने रागना
निमित्तरूप वस्त्रादि परिग्रहनो अभाव होय छे.