Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 41

background image
: २२ : : मागशर : २४९६
कहेवाय नहि, अने तेनी पूर्ण पर्यायने पण मानी कहेवाय नहि, एटले सर्वज्ञ अरिहंतने
पण तेणे खरेखर मान्या नहि जो सर्वज्ञने ओळखे तो ज्ञानस्वभावी आत्माने पण
ओळखे ज. तेथी आचार्यदेवे प्रवचनसारमां कह्युं छे के–
जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे
ते जीव जाणे आत्माने, तसु मोह पामे लय खरे.
सर्वज्ञना द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळखतां ज्ञ–स्वभावी आत्माने जाण्यो, तेनो
मोह नाश थईने सम्यग्दर्शन थाय छे. आत्मानो ज्ञ–स्वभाव छे, ते स्वभावने ज्यां कोई
आवरण न रह्युं त्यां तेनुं पूरुं सामर्थ्य–सर्वज्ञत्व प्रगट्युं. ज्ञान तो आत्मानो स्वभाव
छे अने तेने कोई आवरण नथी तो पछी सर्व पदार्थोने जाणतां तेने कोण रोके? ते सर्व
पदार्थोने केम न जाणे? जरूर जाणे. ज्ञानस्वभावनी प्रतीत वगर केवळज्ञाननी के
सिद्धपदनी प्रतीत खरेखर आवे नहि; केमके केवळज्ञान अने सिद्धपदनुं धाम तो
ज्ञानस्वभावी आत्मा छे. पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थवाथी ज सर्वज्ञनी अने
सिद्ध भगवंतोनी खरी प्रतीत थाय छे. समयसारमां, स्वभाव–सन्मुख थईने
ज्ञानस्वभावी आत्माने द्रष्टिमां–अनुभवमां लीधो तेने ज केवळी भगवाननी
परमार्थस्तुति कही छे.
अहो, आत्मा तो अनादिथी ज्ञानस्वभावी ज छे, बधाय आत्मा अनादिथी
ज्ञायकभावपणे ज अवस्थित छे, पण अज्ञानीने ऊंधी मान्यताने लीधे ते विपरीतपणे
अध्यवसित थाय छे. धर्मात्मा तेने जेवो छे तेवो प्रतीतमां लईने, तेना आधारे
केवळज्ञानने अने सिद्धपदने साधे छे. ज्यां ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने तेनी प्रतीत
करी त्यां संवर–निर्जरा शरू थया, आस्रव–बंध तूटवा मांड्या, ने ते मोक्षनो साधक
थयो; अजीवने जुदुं जाण्युं.–आम साते तत्त्वोनी खरी प्रतीत स्वभाव सन्मुख थयो
त्यारे थई. अल्पज्ञानी तिर्यंच पण स्वानुभूतिथी सम्यग्दर्शन प्रगट करी शके छे;
सम्यग्दर्शन माटे एवी अटक नथी के बार अंग भणवा जोईए. सम्यग्दर्शनमां बार
अंगनो सार समाई जाय छे. आत्मानुभव ते ज मोक्षमार्ग छे; आत्मानुभवीने बार
अंग पढवानी कोई अटक नथी. कोई जीव बार अंग भण्यो न होय छतां
आत्मानुभवमां लीन थईने केवळज्ञान पामी जाय. मोक्षनो मार्ग आत्म–अनुभूतिमां ज
समाय छे.
मोक्षना साधक मुनिवरोने २८ मूळगुण–एक ज वखत भोजन, दिगंबर दशा
वगेरे होय छे, रागनो एटलो अभाव थई गयो छे के २८ मूलगुणथी विरुद्ध राग