: मागशर : २४९६ : २३ :
आवतो ज नथी. मूलगुण संबंधी जे विकल्प छे ते कांई धर्म नथी–एम मुनि जाणे छे.
परंतु जो कोई स्वच्छंदी थई, मुनिना मूलगुणोथी भ्रष्ट थई एम माने के अमारे शुं
वांधो छे? अमने समकित तो छे, पछी बाह्य मूलगुण बगडे तो भले बगडो, अमे तो
मोक्षमार्गी मुनि छीए.–तो एम माननारो जिनआज्ञाथी भ्रष्ट थईने, सम्यक्त्वनो पण
भंग करे छे, ते स्वच्छंदथी जरूर मिथ्याद्रष्टि ज थाय छे. भाई, मुनिपणुं न पळाय तो
तेनी श्रद्धा राख, पण जो अन्यथा मानीने जिनआज्ञानो भंग करीश तो प्रगट मिथ्यात्व
थशे. सम्यग्दर्शन पछी पण चारित्रवंत मुनिदशा वगर मोक्ष थतो नथी, माटे तेनुं स्वरूप
बराबर ओळखवुं जोईए. सम्यग्दर्शन वगर एकला बाह्य क्रियाकांडथी के व्रतथी
मुनिपणुं प्रगटी जाय–एम पण बनतुं नथी. आ रीते सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्ररूप
मुनिदशा छे, ने ते मोक्षमार्ग छे.
‘आत्मधर्मनी राह
जोईने बेसुं छुं’
एक हरिजनभाई लखे छे के–ईनामी योजनामां
‘महाराणी चेलणा’ नुं पुस्तक मळ्युं, ते वांचीने खुब आनंद
थयो; जैनधर्ममां चेलणानी द्रढता जाणवा मळी; धर्मनी केवी
द्रढता ने तेने माटे केटलुं गौरव होवुं जोईए ते जाणवा
मळ्युं. बीजुं–आत्मधर्मनी राह जोईने बेसुं छुं अने हाथमां
आवे त्यारे एक स्थाने बेसीने अथथी ईति सुधी वांची लउं
छुं, अंक पूरो वंचाई जाय त्यारे ज हाथमांथी मूकुं छुं.–
गुरुदेवना शब्दो जाणे के सजीव थईने समजावता होय तेवुं
लागे छे. मुंबईमां जन्मजयंती वखते हुं हतो अने में
गुरुदेवनुं एक काव्य रच्युं छे. गुरुदेव समजावे छे के
आत्मामां कोई वर्ण–वाडो के संप्रदाय नथी. जैनधर्मनी
महत्ता बीजा करतां चडीयाती छे. (एक हरिजन युवान पण
आत्मधर्म द्वारा जैनधर्म प्रत्ये केटलो प्रमोद व्यक्त करे छे ते
आ पत्रथी जणाशे. आवो ज एक पत्र आत्मधर्मना
३१२मा अंकमां पण छपायो छे.)