Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : : मागशर : २४९६
जीवने बंध मोक्षनुं कारण जीवमां छे, बहारमां नथी
(समयसार: बंधअधिकारना प्रवचनमांथी)
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बंध अधिकारमां आचार्यदेव कहे छे के मिथ्याद्रष्टिने बंधन थाय छे अने
सम्यग्द्रष्टिने बंधन थतुं नथी; केमके उपयोग साथे रागनी एकतारूप जे चीकाश ते ज
बंधनुं कारण छे, बीजुं कोई बंधनुं कारण नथी. तेथी रागथी भिन्न उपयोग जेणे
अनुभव्यो छे एवा सम्यग्द्रष्टिने बंधन थतुं नथी.
रागमां एकपणे कोण वर्ते छे? मिथ्याद्रष्टि ज वर्ते छे. सम्यग्दर्शन पछी जे अल्प
राग अने बंधन थाय छे तेने सम्यग्द्रष्टि पोताना उपयोगथी भिन्न जाणे छे, तेथी
खरेखर तेने बंधन नथी.
मन–वचन–कायानी क्रियाओ तथा बाह्य संयोगो मिथ्याद्रष्टिने तथा सम्यग्द्रष्टिने
एकसरखा होय छतां ते वखते मिथ्याद्रष्टि कर्मोथी बंधाय छे ने सम्यग्द्रष्टि बंधाता नथी;
माटे बहारनी क्रियाओ ते बंधनुं कारण नथी एम सिद्ध थयुं. बंधनुं कारण एक ज छे के
उपयोगस्वरूप आत्मानी साथे रागादिकने एकपणे अनुभववा. सम्यग्द्रष्टि पोताने
ज्ञानपणे ज अनुभवे छे, चैतन्यभूमिमां अंश मात्र रागने भेळवता नथी. राग
वगरनो उपयोग ते बंधनुं कारण केम थाय? माटे धर्मीने बंधन नथी.
ज्ञान ते स्वतत्त्व छे; राग ते परतत्त्व छे. देहादि तो जड अने पर छे, ते तो
बहार रह्या; अंदर सूक्ष्म राग ते पण ज्ञानथी भिन्न एवुं परतत्त्व छे, आवी
भिन्नताना अनुभवने ग्रंथिभेद अथवा सम्यग्दर्शन कहे छे. तेमां बंधनो अभाव छे, ने
बंधना कारणोनो पण अभाव छे. आवा ज्ञान वडे बंधनथी छूटाय छे.
अनंती कार्मणवर्गणा आखा लोकमां सर्वत्र भरेली छे; ज्यां सिद्ध भगवान रहे
छे त्यां पण अनंती कर्मवर्गणा भरी छे, छतां सिद्ध भगवानने जरा पण कर्म बंधन केम
थतुं नथी? केमके तेमने रागनो सर्वथा अभाव छे. कर्मवर्गणा ते कांई बंधनुं कारण
नथी, जो ते ज बंधनुं कारण होय तो सिद्धनेय बंधन थवुं जोईए.
वळी आ पांच ईन्द्रियो तथा अंदरनुं जड मन ते पण बंधनुं कारण नथी;