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केवळी भगवानने बंधना कारणनो अभाव छे. ईन्द्रियादि जो बंधनुं कारण होय तो
केवळीने पण बंधन थवुं जोईए. बंधनुं कारण तो उपयोगमां रागनी एकता करवी ते
ज छे; अने ते तो अज्ञानीने ज होय छे, तेथी अज्ञानीने ज बंधन थाय छे.
बंधनुं कारण माने छे, तेथी छूटवानो उपाय पण बहारमां माने छे; ए बन्नेमां भूल छे.
छे, रागमां मारो उपयोग नथी; अने राग मारा उपयोगथी बहार रागमां ज छे, मारा
उपयोगमां राग नथी.–आ रीते रागना कोईपण अंशने धर्मी पोताना उपयोगमां
भेळवता नथी, उपयोगने शुद्ध ज अनुभवे छे; आवा अनुभवमां धर्मीने बंधन थतुं
नथी.
के रागथी भिन्न शुद्ध उपयोगरूप पोताने अनुभववो ते निश्चयथी मोक्षनुं कारण छे.
बंध–मोक्षना कारणनो आ नियम छे, एटले के अबाधित सिद्धांत छे.
भावबंध छे, ने ते ज बंधनुं कारण छे. आवुं बंधन मिथ्याद्रष्टिने ज होय छे,
सम्यग्द्रष्टिने होतुं नथी–एम बताववानो आचार्यदेवनो अभिप्राय छे. अहो,
सम्यग्दर्शन थतां जीव अबंध थई गयो. सम्यग्दर्शनना आवा परम महिमानी
जगतने खबर नथी.
छूटी त्यां उपर कहेल क्रियाओ वगेरे होवा छतां तेने बंधन थतुं नथी.–आ सम्यग्दर्शननुं
सामर्थ्य छे.