Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९६ : २प :
एटले ते ईन्द्रिय–मननो सद्भाव होवा छतां केवळी भगवानने बंधन थतुं नथी, केमके
केवळी भगवानने बंधना कारणनो अभाव छे. ईन्द्रियादि जो बंधनुं कारण होय तो
केवळीने पण बंधन थवुं जोईए. बंधनुं कारण तो उपयोगमां रागनी एकता करवी ते
ज छे; अने ते तो अज्ञानीने ज होय छे, तेथी अज्ञानीने ज बंधन थाय छे.
अरे, जीवोने मोक्षना कारणनी तो खबर नथी ने पोताने बंधन केम थाय छे
तेनी पण खबर नथी. बंधनुं खरूं कारण पोतामां छे ते भूलीने बहारनी क्रियाओने
बंधनुं कारण माने छे, तेथी छूटवानो उपाय पण बहारमां माने छे; ए बन्नेमां भूल छे.
उपयोगमां रागादिने मानवा ते ज बंधनुं कारण छे. एम जाणीने धर्मीए
भेदज्ञानवडे तेनो त्याग कर्यो छे. भेदज्ञानथी ते जाणे छे के मारो उपयोग उपयोगमां ज
छे, रागमां मारो उपयोग नथी; अने राग मारा उपयोगथी बहार रागमां ज छे, मारा
उपयोगमां राग नथी.–आ रीते रागना कोईपण अंशने धर्मी पोताना उपयोगमां
भेळवता नथी, उपयोगने शुद्ध ज अनुभवे छे; आवा अनुभवमां धर्मीने बंधन थतुं
नथी.
आत्माना उपयोगमां रागादिने करवा एटले के उपयोगने रागादि अशुद्धरूपे
अनुभववो ते ज निश्चयथी बंधनुं कारण छे; अने उपयोगमां रागादिने न करवा एटले
के रागथी भिन्न शुद्ध उपयोगरूप पोताने अनुभववो ते निश्चयथी मोक्षनुं कारण छे.
बंध–मोक्षना कारणनो आ नियम छे, एटले के अबाधित सिद्धांत छे.
आत्मानो उपयोगस्वभाव बंधनुं कारण नथी, तेमज परवस्तुओ बंधनुं
कारण नथी. रागादिने उपयोग साथे एकमेक करवारूप जे अशुद्धभाव छे ते ज
भावबंध छे, ने ते ज बंधनुं कारण छे. आवुं बंधन मिथ्याद्रष्टिने ज होय छे,
सम्यग्द्रष्टिने होतुं नथी–एम बताववानो आचार्यदेवनो अभिप्राय छे. अहो,
सम्यग्दर्शन थतां जीव अबंध थई गयो. सम्यग्दर्शनना आवा परम महिमानी
जगतने खबर नथी.
अज्ञानीने पण बहारनी कि््रयाओ, कार्मणवर्गणाओ के ईन्द्रियादि ते कांई बंधनुं
कारण नथी, उपयोगमां रागनी एकता ते ज तेने बंधनुं कारण छे, ज्यां एवी एकता
छूटी त्यां उपर कहेल क्रियाओ वगेरे होवा छतां तेने बंधन थतुं नथी.–आ सम्यग्दर्शननुं
सामर्थ्य छे.
मन–वचन–कायानी क्रियारूप योग ते पण बंधनुं कारण नथी; केमके यथायोग्य