Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : : मागशर : २४९६
संयमीओने ते योग होवा छतां बंधन थतुं नथी. ए ज रीते जीवना कषाय वगर
बहारमां सचित्त–अचित्त वस्तुनो उपघात थाय ते पण बंधनुं कारण नथी; जो बाह्य
वस्तु बंधनुं कारण होय तो समितिमां तत्पर मुनिराजने पण बंधन थवानो प्रसंग
आवे, पण ते मुनिराजने बंधन थतुं नथी, केमके बंधनुं कारण जे राग साथे एकता,
तेनो तेने अभाव छे. मिथ्यात्व ज बंधनुं मुख्य कारण छे; मिथ्यात्व वगरना रागादि
कषायभावो ते बंधनुं गौण कारण छे.
शरीरादि पुद्गलनी क्रियाओ जीवने बंधनुं कारण केम होय? जीवना बंधनुं
कारण तो जीवना भावमां होय. जीवने मोक्षनुं कारण पण बहारमां नथी, पोताना
स्व–द्रव्यरूप सम्यग्दर्शनादि भाव ज मोक्षनुं कारण छे. जीवना उपयोगनुं रागादि
साथे जोडाण ते बंधनुं कारण, अने उपयोगनी रागादिथी भिन्नता ते मोक्षनुं
कारण छे.
पोतानी अवस्थामां दोष होय ते जीवने बंधनुं कारण थाय, पण बीजी भिन्न
वस्तुमां जे क्रिया थाय ते जीवने बंधनुं कारण न थाय. रागादि मलिनभावो साथे
एकताथी चैतन्यभूमि मलिन थाय छे, ते एक ज बंधननुं कारण छे, बीजुं कोई बंधनुं
कारण नथी. उपयोगभूमि तो आनंद स्वरूप छे, राग वगरनी छे; ने रागादि भावो तो
दुःखरूप छे. आम भिन्नता जाणीने उपयोगने रागथी जुदो अनुभववो ते बंधनथी
छूटवानो उपाय छे.
सम्यग्द्रष्टि मन–वचन के शरीरादिनी चेष्टामां वर्ते छे एम उपचारथी ज कहेवाय
छे, खरेखर सम्यग्द्रष्टि रागमां पण नथी वर्ततो, तो शरीरनी शी वात? ते तो शरीर
अने रागथी भिन्न एवा उपयोगमां ज वर्ते छे. उपयोगमां ज स्वपणे वर्ते छे, रागमां
स्वपणे वर्ततो नथी, तेथी तेने बंधन थतुं नथी. राग वगरनो उपयोग बंधनुं कारण
केम थाय? बस, उपयोगमां रागनो अभाव ते ज मोक्षनुं कारण छे.
सम्यग्द्रष्टिनो कोई अद्भुत महिमा छे के तेने बंधन थतुं नथी; सर्व प्रसंगे तेनो
उपयोग रागथी जुदो ने जुदो वर्ते छे; अंतरना स्वभावमां ज एकपणे वर्ततो तेमनो
उपयोग रागादि अशुद्धभावरूप थतो ज नथी, माटे तेमने बंधन नथी; ते तो शुद्ध
उपयोगने रागथी जुदो पाडीने मोक्षने ज साधे छे. भावकर्मथी जुदो शुद्ध आत्मा, ते ज
साचो आत्मा छे, ते ज समयसार छे. आवा आत्माने जे अनुभवे ते धर्मीने बंधन थतुं
नथी. आवो शुद्ध अनुभव ते मोक्षनुं कारण छे.
धर्मीने तो शरीर अने रागमांथी एकताबुद्धि छूटीने शुद्ध उपयोगना अनुभवथी