: २८ : : मागशर : २४९६
राग–द्वेषनुं कर्तृत्व नथी. हुं ज्ञान छुं–एवुं स्वरूप भूलीने ‘शुभराग हुं करुं, ने तेनाथी
परजीवने हुं जीवाडी दउं’ एवी बुद्धि पण ज्यां मिथ्यात्व छे, तो पछी हिंसाभावथी
परजीवने मारवानो अभिप्राय मिथ्यात्व केम न होय? शुभ के अशुभ कोई पण रागनुं
कर्तृत्व ते मिथ्यात्व छे. अने ते ज बंधनुं कारण छे. धर्मीने तेनो अभाव छे, माटे तेने
बंधन थतुं नथी.
धर्मी जाणे छे के हुं ज्ञान छुं; ज्ञानभाव ते रागभाव नथी, ज्ञानभावमां रागनुं
अस्तित्व नथी; ज्ञानने पण करे अने रागने पण करे–एम बे विरुद्धभावोनुं कर्तृत्व
एकसाथे रही शके नहीं. जेने रागनुं कर्तृत्व छे तेने राग वगरना ज्ञानभावनी खबर
नथी. अने जेणे ज्ञानभाव प्रगट्यो छे एवा धर्मी जीवने रागनुं कर्तृत्व नथी. आ रीते
ज्ञान अने रागनी भिन्नतारूप परिणमन ते धर्मीजीवने मोक्षनुं कारण छे.
सुखकी सहेली है अकेली उदासीनता
संसारमां संयोग वियोगनो गमे ते प्रसंग हो, पण
मुमुक्षु जीवे तो आत्महितना मार्ग तरफ ज आगळ वधवानुं
छे. युवान पुत्रना मृत्यु वगेरे प्रसंगमां जीवोने दुःख थाय,
पण ते ज वखते दुःखनी सामे सुखधाम एवा चैतन्यनी
भावना अने वैराग्यने हाजर राखीए तो जीवने आत्महितने
माटे चानक चढे. संतोए कह्युं छे के सुखनी बहेनपणी तो
‘उदासीनता’ छे–”सुखकी सहेली है अकेली उदासीनता.”
बाकी पुत्रो वगेरेनो आत्मा तो अस्तिरूप ज छे; फेर
मात्र एटलो के आपणाथी थोडोक दूर,–पण ते जीवंत ज छे;
तेनो नाश नथी थयो. मनुष्यलोक जेटलुं ज टूंकु ज्ञान न
राखीए ने देवलोक सुधी ज्ञानने लंबावीने विचारीए तो शुं ते
आत्मा आपणने जीवंत न देखाय?–जरूर देखाय. ज्यां
आत्मानी नित्यता छे त्यां मरणनो भय केवो? आवा
आत्माने लक्षगत करीने आपणे पंचपरमेष्ठीना पंथे जवानुं
छे. तेथी ‘हुं जिनवरनो संतान छुं’ एम ओळखवामां मुमुक्षु
गौरव माने छे.