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छे ते भ्रम छे; अने बाह्य सामग्रीने राखवा के टाळवा मागे छे परंतु ते कांई तेने
आधीन नथी. एटले तेमां पण ईच्छावडे आकुळव्याकुळ ज थाय छे. अनुकूळ
संयोग आवे ने सुख माने, पण ते कांई सुख नथी. वास्तविक सुख शुं छे तेना
स्वरूपनी तेने खबर पण नथी. कां तो संयोगने अने कां तो मंद आकुळताने ते
सुख माने छे, पण चैतन्यतत्त्व राग अने संयोग वगरनुं छे, तेने क््यांय बहारथी
सुख लाववुं पडतुं नथी पण पोते स्वयं सुखरूप छे; आवा निराकुळ सुखस्वरूपने
ओळखतो नथी तेथी जीव दुःखी थाय छे. मिथ्यात्वनुं जे दुःख ते सम्यग्दर्शनादि
वडे ज टळे छे, बीजो कोई उपाय नथी.
जीव सुखने माटे संयोगमां व्यर्थ झांवा नाखे छे, ने संयोग मटतां जाणे सुखनुं साधन
चाल्युं गयुं–एम मानीने महा दुःखी थाय छे. पण चैतन्यस्वभावमां सुख छे ने मोहनुं
ज दुःख छे–एम समजीने मोहने दूर करे तो दुःख टळे ने सुख थाय. ए सिवाय संयोगो
फेरववा मागे ते कांई जीवने आधीन नथी, ने ईच्छा प्रमाणे कांईक संयोग होय तो पण
तेमां कांई सुख नथी. भाई, संयोग तरफनी वृत्ति तोड ने संयोगथी भिन्न चैतन्य तत्त्व
तरफ अंतरमां वळ. आत्मा ज आनंदस्वरूप छे, तेनी श्रद्धा द्वारा ज शांति मळे छे.–
बीजो कोई उपाय नथी.
उदय निमित्ते थाय छे, तेमां जीवनो प्रयत्न कांई काम आवतो नथी. जीव मोहथी
मफतनो दुःखी थाय छे; जो समाधान करीने सम्यग्दर्शनादि करे तो सुख थाय ने
आकुळता मटे.
अरे, जेनाथी पापास्रव थतो होय एवी संपदा शुं कामनी? अने जो मारे