: मागशर : २४९६ : ३१ :
(विविध तत्त्वचर्चाथी भरपूर सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
भगवत् धर्म सूक्ष्म छे, अर्थात् सर्वज्ञनो वीतराग धर्म सूक्ष्म छे; राग तो स्थूळ
परिणाम छे, तेना वडे भगवत् धर्म पमातो नथी. सूक्ष्म एवो भगवत्धर्म–वीतरागधर्म
ते तो सूक्ष्म–अतीन्द्रिय ज्ञानवडे ज पमाय छे.
रे जीव! रत्नत्रयना सुंदर पुष्पोथी खीलेला तारा चैतन्यना बागमां पांच
ईन्द्रिय विषयोरूपी ऊंटडाने तुं छूटा न मुकीश, नहितर ते ऊंटडा तारा उत्तम
चैतन्यबागने उज्जड करी नांखशे. सम्यक्त्व सहितना वैराग्यरूपी वाडथी तारा
चैतन्यबागनी रक्षा करजे.
* सुख माटे शरण
अहो, अनादिथी जेनुं शरण लीधा वगर जीव संसारमां दुःखी थई रह्यो छे एवो
शरणभूत ज्ञानानंदमय आत्मा, तेनुं जेणे शरण लीधुं ते जीव स्वयमेव सुखी छे, सुख
माटे जगतना कोई पदार्थनी वांछा तेने नथी. सुखथी भरेलो पोतानो आत्मा, तेना
अनुभवथी ज जीव सुखी छे.
* भगवाननो वारसो
भगवान कहे छे के हे जीव! आनंदनो खजानो अमे खोल्यो छे; अमारा आ
आनंदना खजानानो वारसो अमे तने आपीए छीए. तारे आ आनंदनो वारसो लेवो होय
तो तुं अंतरमां चिदानन्दस्वभावनी सन्मुख था; देहथी ने रागथी भिन्नता जाणीने ज्ञानमय
आत्माने अनुभवमां ले; एटले तने पण अमारा जेवो ज आनंदनो खजानो मळशे.
–आ छे भगवाननो वारसो.
प्रश्न:– अज्ञानीए समवसरणमां भगवानने जोया हशे?
उत्तर:– ना; एणे भगवानना–दिव्य शरीरने जोयुं, वाणी सांभळी, पण
भगवानने न जोया, भगवानना ज्ञानमय आत्माने न जोयो के न ओळख्यो. दिव्य देह
अने वाणी ए कांई भगवान नथी, भगवान तो एनाथी जुदा छे. जो भगवानने जुए
–ओळखे तो आत्मानुं स्वरूप ओळखाई जाय, ने अज्ञान रहे नहीं.
प्रश्न:– भरतक्षेत्रनो जीव भगवानने देखी शके?
उत्तर:– हा; सम्यग्ज्ञानना बळे भरतक्षेत्रनो जीव पण भगवानना स्वरूपने
देखी शके छे–ओळखी शके छे. क्षेत्रथी नजीक होय तो ज भगवाननुं स्वरूप ओळखी
शकाय एवुं कांई नथी.