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प्रश्न:– विदेहक्षेत्रमां मनुष्यनुं केटलुं आयुष्य होय?
उत्तर:– उत्कृष्ट आयु करोड पूर्व होय छे.
प्रश्न:– त्यां एथी ओछुं आयुष्य होई शके?
उत्तर:– जी हा, घणा जीवोने एथी ओछुं आयुष्य पण होई छे. त्यांना जे
सीमंधरादि वीस तीर्थंकरो छे तेमने तो करोड पूर्वनुं उत्कृष्ट आयुष्य ज होय छे; बीजा
सामान्य जीवोमां ओछुं आयुष्य पण होय छे. (जे जुगलिया–मनुष्यो छे, तेमनुं
आयुष्य असंख्यात वर्षोनुं होय छे.)
प्रश्न:– विदेह क्षेत्रना जीवो मरीने स्वर्गमां ज जाय–ए खरूं?
उत्तर:– ना; ते संसारनी चारगति ने पंचम मोक्षगति, तेमांथी कोई पण गतिमां
जाय. भोगभूमिना जीवोने माटे ए नियम छे के ते मरीने स्वर्गमां ज थाय. बीजी कोई
गतिमां न जाय.
प्रश्न:– भरतक्षेत्रनो सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने विदेहमां उपजी शके?
उत्तर:– ना; सीधो त्यां न ऊपजे; वच्चे स्वर्गनो भव करीने पछी उपजी शके.
कोई क्षायिक सम्यग्द्रष्टि जीवे सम्यक्त्व पाम्या पहेलां मनुष्य आयु बांधी लीधुं होय तो
ते भोगभूमिनो ज मनुष्य थाय.
* कहो, माता! ए कोण छे? :– त्रिशला माताजीनी सेवामां रहेली दिग्कुमारी
देवीओ माताजी साथे आनंदकारी चर्चा करतां करतां पूछे छे के–हे माता! जगतमां सौथी
उत्तम,–चार अक्षरनी एक एवी वस्तु बतावो के जे तमारी पासे होय!
चार अक्षरनी चीज छे. जगतमां ते श्रेष्ठ छे...
तुम अंतर बीराजे छे, कहो, माता! ए कोण छे?
* आनंदनुं धाम :– शरीर तो छे रोगनुं धाम. आतमराम आनंदनुं धाम.
अज्ञान छे दुखनुं धाम. समकित छे सुखनुं धाम.
*आत्मानुं जीवन :– आत्मा ज्ञानआनंदना जीवनथी जीवनारो छे. रागथी के
जड शरीरथी आत्मा जीवनारो नथी.
चैतन्य रंगथी रंगायेलो आत्मा रागथी रंगातो नथी.
रागना रंगथी रंगायेलो जीव आत्माने देखतो नथी.
*एक हतो राजा :– ते अयोध्यामां राज करे; पछी दीक्षा लईने मुनि थया. बे
हाथना आंगळा भेगा करो तो ते राजाना पहेला बे अक्षर थाय. छेल्ला बे अक्षरमां
बेसवानी तमने मजा आवे.