Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९६ : ३७ :
सत्संग जीवने जागृत राखीने क्षणे ने
पळे वैराग्यनी प्रेरणा आप्या ज करे छे.
* गुरुदेव वैराग्यथी कहे छे के अरे, आ संसारमां वैराग्यना आवा प्रसंग बन्या ज करे
छे. कर्मरूपी दुश्मने जीवने हेरान करवा माटे आ शरीररूपी पींजरूं बनाव्युं छे. ए
पींजरामां पूरावुं जीवने केम गमतुं हशे? जीव पोताने भूलीने आ पींजराने ज
पोतानुं स्वरूप मानी बेठो. तेथी पींजराथी जीव छूटो पडतां खोटी रीते दुःखी थाय छे.
* रे जीव! तुं विचार तो कर, के देहनुं पींजरुं छूटतां तारा आत्मानुं शुं कांई ओछुं
थई गयुं? अहीं के बीजे गमे त्यां आत्मा पोताना अनंत गुणो ज्ञान–
आनंदसहित ज सदाय बिराजी रह्यो छे, तेनुं अस्तित्व कदी मटी जतुं नथी, के
तेनो कोई ज गुण ओछो थतो नथी. पछी खेद शेनो?–मात्र मोहनो. मोहनुं
दुःख मरण करतांय वधारे छे.
* मुमुक्षु जीवे विचारवुं घटे के–जगतमां मृत्यु वगेरेनां अनेक प्रसंग देखवा छतां
वीतरागने शुं खेद थाय छे?–जराय नहीं. जो वीतराग खेद नथी करता तो हुं शा
माटे खेद करीने दुःखी थाउं?–शुं हुं पण वीतराग जेवो ज नथी? शुं मने
वीतरागता नथी गमती? शुं मारे वीतराग नथी थवुं? मने वीतरागता गमे छे.
तो पछी आवा अल्प प्रसंगमां आवो खेद करवानुं मने शोभतुं नथी.–आम
शूरवीर थईने हे जीव! तुं वीतरागी आदर्शने अपनाव.
* जागृत जीव पोते ज पोतानी ताकातथी गमे ते प्रसंगे समाधान करे एवो छे.
सत्संगनुं वातावरण क्षणे ने पळे जीवने जागृत राखीने वैराग्यनी प्रेरणा
आप्या ज करे छे. जगतना कोई प्रसंगनी ताकात नथी के आत्मार्थीनी
वैराग्यपरिणतिने तोडी शके.
रामद्वारा थयेलुं अपमान के घोर वनवास पण सीताजीनी ज्ञानदशाने के
वैराग्यदशाने जराय आंच पहोंचाडी शक्या न हता.
घोरातिघोर आळ, अने फांसीनी सजा पण वीर सुदर्शन शेठने वैराग्यभावनाथी
जराय डगावी शक््या न हता.
* हुं ज्ञान छुं–एवी निजानंदनी अनुभूतिमांथी समकितीने जगतमां कोण डगावी
शके छे? दूरना दाखला क्यां शोधवा?–आपणी नजर समक्ष ज ज्ञानीओ केवा
वीतरागभावे शोभी रह्या छे! केवो सरस छे एमनो आत्मभाव! आपणे पण
एमना भक्त छीएने!–तेमना जेवो वीतरागभाव ने आत्मभाव आपणे
तेमनी पासेथी शीखवानो छे. ए ज समाधाननो उपाय छे; ए ज शांतिनो राह
छे, ए ज कर्तव्य छे.
हे जीव! संसारथी विरक्त थईने तुं आत्मामां गमाड.